इन 5 वजहों से डीके शिवकुमार पर भारी पड़े सिद्धारमैया
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सिद्धारमैया को मिला ज्यादातर विधायकों का साथ
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इस चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत हासिल की है। बताया जाता है कि विधायक दल की बैठक में 95 विधायकों ने खुलकर सिद्धारमैया का नाम लिया।
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इस चुनाव में कांग्रेस ने 135 सीटों पर जीत हासिल की है। बताया जाता है कि विधायक दल की बैठक में 95 विधायकों ने खुलकर सिद्धारमैया का नाम लिया।
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मतलब विधायक सिद्धारमैया को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं। ऐसे में अगर डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री बनाया जाता तो आगे चलकर बगावत भी हो सकती थी।
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दूसरा सबसे बड़ा कारण डीके शिवकुमार पर चल रहे मुकदमे हैं। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता यही रही कि डीके शिवकुमार के खिलाफ कई मामले दर्ज हैं।
डीके शिवकुमार पर मुकदमों की मुसीबत
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इस बीच, कर्नाटक के डीजीपी को ही CBI का नया डायरेक्टर भी बना दिया गया है। कहा जाता है कि CBI के नए डायरेक्टर डीके शिवकुमार को करीब से जानते हैं।
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दोनों के बीच बिल्कुल नहीं बनती है। ऐसे में कांग्रेस को लगा कि अगर उन्हें CM बनाया गया तो कहीं CBI उनकी पुरानी फाइलों को खोल दे, जिसका नुकसान सरकार को हो सकता है।
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ये सबसे बड़ा कारण है। सिद्धारमैया की पकड़ हर तबके में काफी अच्छी है। खासतौर पर दलित, पिछड़े और मुसलमानों के बीच वह काफी लोकप्रिय हैं।
पिछड़े वर्ग में सिद्धारमैया की मजबूत पैठ
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ऐसे में अगर सिद्धारमैया को कांग्रेस ने CM नहीं बनाया होता तो संभव है कि वह पार्टी के खिलाफ जा सकते थे। ऐसी स्थिति में कांग्रेस के हाथों से एक बड़ा वोट बैंक खिसक सकता था।
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2013 और फिर 2018 में सरकार बनाने के बावजूद लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का परफॉरमेंस ठीक नहीं था। ऐसे में इस बार पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है।
लोकसभा चुनाव पर फोकस
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सिद्धारमैया को पार्टी और सरकार दोनों ही चलाने का अनुभव है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं, जिसमें से 2019 में कांग्रेस को सिर्फ एक सीटें मिली थी।
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कांग्रेस ने इस बार ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य बनाया है। इसके लिए पार्टी हाईकमान को सिद्धारमैया का चेहरा ज्यादा मजबूत समझ में आया।
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सिद्धारमैया लंबे समय से अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग और दलित वर्ग फॉर्मूले पर काम कर रहे थे। अहिन्दा समीकरण के तहत सिद्धारमैया का फोकस राज्य की 61 प्रतिशत आबादी है।
सिद्धारमैया का 'अहिन्दा' फॉर्मूला
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2004 से ही वह इस फॉर्मूले पर काम कर रहे हैं और काफी हद तक ये सफल भी रहा। ये ऐसा फॉर्मूला है, जिसमें इन तीनों वर्ग के वोटर्स को एक साथ लाया जा सकता है।
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2009 के बाद से कांग्रेस कर्नाटक में इसी समीकरण के सहारे राज्य की राजनीति में मजबूत पैठ बनाए हुई है। यही कारण है कि कांग्रेस इसे कमजोर नहीं करना चाहती है।