Author- DNP NEWS DESK 13/05/2024
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दुःख से बढ़कर इंसान का कोई और दुश्मन नहीं है। दुःख अच्छे से अच्छे बुद्धिमान और शक्तिशाली इंसान को भी कमजोर बना देता है। अतः दुःख को अपने मन और बुद्धि पर हावी ना होने दें।
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उत्साह में अपार शक्ति होती है। उत्साहित मन वाला व्यक्ति की भी बड़ी से बड़ी विपत्ति को आसानी से हरा सकता है।
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उत्साहहीन, दुःख में डूबा और निर्बल इंसान कभी कोई महान काम नहीं कर सकता।
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दुःख आने पर अपने जीवन का अंत कर देने में कोई भलाई नहीं है। सुख और आनंद का मार्ग जीवन से ही निकलता है, मृत्यु से नहीं।
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इंसान का चेहरा ही उसके मन के भावों का दर्पण होता है। कोई भी अपने चेहरे से अपने मन के भाव को छुपा नहीं सकता है।
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क्रोध हमारा ऐसा शत्रु है जो दिखता मित्र की तरह है। ये वो तेज धार वाली तलवार है जो हमारा सबकुछ नष्ट कर सकता है।
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जब इंसान का विनाश नजदीक आता है तो उसे हर किसी की अच्छी सलाह भी बुरी ही लगती है।
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मूर्ख के साथ विनम्रता, कपटी इंसान के साथ प्रेम, कंजूस के साथ नीति और क्रोधी आदमी के साथ शांति की बातें करने का कोई अर्थ नहीं है। ये सब व्यर्थ है।
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पराधीन यानी दूसरों के अधीन काम करने वाले को सपने में भी सुख प्राप्त नहीं होता। इंसान को स्वाधीनता यानी खुद के बल पर ही पुरुषार्थ करना चाहिए।
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दूसरों को दुःख देने से बड़ा कोई पाप ग्रंथों में नहीं लिखा गया है। अतः किसी के प्रति भी कोई ऐसा काम ना करें जिससे वह दुःखी हो।