Author- Esika Shaw 16/05/2024
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कर्म का फल व्यक्ति को उसी तरह ढूंढ़ लेता है, जैसे कोई बछड़ा सैकड़ों गायों के बीच अपनी मां को ढूंढ़ लेता है।
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आत्मा ना जन्म लेती है, न मरती है, ने ह इसे जलाया जा सकता है, ना ही इसे भिगोया जा सकता है, आत्मा अमर व अविनाशी है।
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इस संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है।
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आत्मा शरीर को वैसे ही छोड़ देती है, जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को उतार कर नए कपड़े धारण कर लेता है।
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मन शरीर का हिस्सा है। सुख दुख का एहसास करना आत्मा का नहीं शरीर का काम है। मान अपमान लाभ हानि खुश होना दुखी होना सब मन की शरारत है।
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जब यह संसार ही स्थाई नहीं है, तो इस संसार की कोई वस्तु कैसे स्थाई हो सकती है।
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मैं सभी जीवों में विद्यमान हूं, मैं चींटी में भी विद्यमान हूं और हाथी में भी व्दयमान हूं।
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सारे रिश्ते नश्वर हैं और केवल शरीर से जुड़े हुए हैं। जैसे ही व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है आत्मा शरीर को छोड़ देती है। आत्मा का शरीर से जुड़े रिश्तों से कोई नाता नहीं रह जाता है।
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मेरे भी कई जन्म हो चुके हैं। तुम्हारे भी कई जन्म हो चुके हैं। ना तो मेरा आखिरी जन्म है आर ना यह तुम्हारा आकिरी जन्म है।
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वर्तमान परिस्थिति में जो तुम्हारा कर्तव्य है वही तुम्हारा धर्म है, धर्म व्यक्तिगत होता है।
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