Adani-Hindenburg Case: देश के चर्चित उद्योगपति गौतम अडानी के लिए आज का दिन बेहद खास रहा है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट (SC) ने आज अडानी-हिंडनबर्ग मामले में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा किए जा रहे जांच को लेकर अहम टिप्पणी की है। कोर्ट की ओर से मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया गया है कि सेबी की जांच सही दिशा में जा रही है और इसे पूरा करने के लिए 3 महीने का वक्त दिया गया है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले में नवंबर 2023 में ही सुनवाई की थी जिसके बाद से कोर्ट द्वारा फैसला सुरक्षित रख लिया गया था। दरअसल अमेरिकी शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग ने गौतम अडानी के फर्म पर शेयरों में व्यापक तौर पर हेरा-फेरी के आरोप लगाए थे जिस मामले में जनवरी 2023 से ही सुनवाई चल रही है।
Adani-Hindenburg मामले में SC का बड़ा फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आज अडानी-हिंडनबर्ग मामले में सेबी द्वारा की जा रही जांच को लेकर अहम टिप्पणी की है। कोर्ट की ओर से फैसले में स्पष्टय किया गया है कि सेबी की जांच में कोई अनियमितता नहीं पाई गई है। इस पूरे प्रकरण में कुल 24 मामलों पर जांच होनी थी जिसमें बचे 2 मामलों पर जांच के लिए 3 माह का वक्त दिया गया है। बता दें कि अडानी-हिंडनबर्ग मामले में इस अहम फैसले को डीवाई चंद्रचूड़ की तीन सदस्यीय पीठ द्वारा सुनाया गया है।
अडानी समूह पर लगे थे गंभीर आरोप
अमेरिकी शॉर्ट सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग की ओर से 23 जनवरी 2023 के दिन एक रिसर्च रिपोर्ट पब्लिश की गई थी। इसको लेकर शेयर बाजार के साथ उद्योग जगत में हलचल देखने को मिला था। दरअसल हिंडनबर्ग द्वारा पेश की गई रिसर्च रिपोर्ट में बड़ा दावा करते हुए अडानी समूह द्वारा शेयरों में हेर-फेर के आरोप भी लगाए थे। इस रिपोर्ट में कुल 88 प्रश्नों को शामिल करते हुए हिंडनबर्ग की ओर से कहा गया था कि पिछले 3 सालों में अडानी समूह के शेयरों की कीमत बढ़ने से गौतम अडानी की संपत्ति एक अरब डॉलर से बढ़कर 120 अरब डॉलर हो गई है। इसके अलावा हिंडनबर्ग द्वारा ये भी स्पष्ट किया गया था कि देश के अलावा मॉरीशस से लेकर संयुक्त अरब अमीरात तक जैसे टैक्स हेवन देशों में अदानी समूह की कई मुखौटा कंपनियां हैं जो कि भ्रष्टाचार और मनी लांड्रिंग जैसे कृत्य में लिप्त हैं। इसके बाद से अडानी समूह के शेयर में तगड़ी गिरावट देखने को मिली थी और मामला तुल पकड़ता नजर आया था।
अडानी समूह की ओर से हिंडनबर्ग द्वारा पेश की गई रिसर्च रिपोर्ट को बेतुका बताया गया था और इसे समूह को बदनाम करने की साजिश करार दिया गया था।
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