Friday, November 22, 2024
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Adani-Hindenburg मामले में JPC की मांग पर अड़ा विपक्ष, जांच से आखिर क्यों भाग रही सरकार

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Adani-Hindenburg: हिंडनबर्ग और अडानी ग्रुप मामले में लगातार नए मोड़ देखने को मिल रहे हैं। हिंडनबर्ग की एक रिपोर्ट ने गौतम अडानी को आसमान से जमीन पर पहुंचा दिया है। 7 दिनों में उन्हें लगभग 10 लाख करोड़ का नुकसान हो चुका है। उनकी परेशानियां अभी भी खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। बीते मंगलवार को उन्हें अपने FPO को रद्द करना पड़ा और कुछ समय पहले Dow Jones ने उन्हें US Share Market से निकालने का ऐलान कर दिया। अब इस मामले में नया मोड़ देखने को मिल सकता है। दरअसल हिंडनबर्ग रिपोर्ट के बाद अडानी ग्रुप की जांच हो इस बात को लेकर संसद में जमकर हंगामा हो रहा है। बीते शुक्रवार भी हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर विपक्ष ने जमकर हंगामा किया और इस मामले में JPC (Joint Parliament Committee) से जांच की मांग पर अड़ गए लेकिन सरकार इस मांग को लगातार अनसुना कर रही है।

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आखिर क्यों इस मांग को अनसुना कर रही सरकार

दरअसल इस तरह के मामलों में पहले भी विपक्ष की मांग पर सरकारें JPC गठित करती रही है और कई बार ऐसा हुआ है कि जांच रिपोर्ट के बाद बड़े खुलासे हुुए हैं और सरकार के लिए मुश्किल हालात पैदा हुए हैं। आजाद भारत में अब तक केवल 6 बार घोटालों की जांच के लिए JPC बनाई गई है। ऐसे में कई बार ऐसा हुआ है कि रिपोर्ट आने के बाद सरकार गिर गई या तो सरकार की काफी किरकिरी हुई।

क्या है JPC?

Joint Parliament Committee सांसदों की मिली जुली कमेटी होती है। भारत की संसद में दो तरह की कमेटी गठित की जाती हैं पहली स्थायी कमेटी और दूसरी अस्थाई कमेटी।

स्थायी कमेटी: स्थायी कमेटी का प्रावधान संविधान में है। इसमें PAC यानी (Permanent Account Committee) शामिल है। ये कमेटी सरकार के वित्तीय कामों पर नजर रखती है और उसकी जांच करती है।

अस्थायी कमेटी: वित्तीय जांच के अलावा अगर जरूरत पड़ती है तो संसद सभी दलों की सहमति लेकर कुछ कामों के लिए अस्थाई कमेटी बनाती है। इनमें तकनीकी विषयों के विधेयकों की जांच परख के लिए कमेटी गठित की जाती है। ये कमेटियां जांच करने के बाद विधेयक में कुछ जोड़ने, घटाने या बदलाव करने की सलाह सरकार को देती हैं।

JPC: इन्हीं कमेटियों की तरह ही JPC कमेटी भी है जो देश में होने वाली किसी बड़ी घटना या घोटालों की जांच करती है। यह परंपरा ब्रिटेन के संविधान से ली गई है। यह सांसदों की मिली-जुली कमेटी होती है। हालांकि संसद में सरकार का बहुमत होता है इसलिए कमेटी बनानी है या नहीं इस बात का फैसला सरकार लेती है।

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