Ratan Tata: देश के शीर्ष उद्योगपति रतन टाटा का निधन 86 वर्ष की उम्र में हो गया है। अब उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए नरीमन प्लाइंट के NCPA लॉन में रखा गया है। इसके बाद देर शाम 4 बजे राजकीय सम्मान के साथ वर्ली के पारसी शवदाह गृह में उनका अंतिम संस्कार (Ratan Tata Funeral Ceremony) किया जाएगा और उनके पार्थिव शरीर को इलेक्ट्रिक अग्निदाह में रखा जाएगा। रतन टाटा के अंतिम संस्कार को लेकर कई तरह की सुर्खियां बन रही हैं।
लोगों के ज़हन में ये सवाल उठ रहे हैं कि रतन टाटा (Ratan Tata) का अंतिम संस्कार कैसे और कहां किया जाएगा? क्या रतन टाटा का अंतिम संस्कार पारसी नियमों (Parsi Community) के अनुसार किया जाएगा? पारसी होने के बावजूद रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से क्यों किया जाएगा? इस तरह के तमाम सवाल लोगों के मन में घर कर रहे हैं। ऐसे में आइए हम आपको इस तरह के सभी सवालों का जवाब देने की कोशिश करते हैं।
Ratan Tata का अंतिम संस्कार हिन्दू परंपराओं के अनुसार क्यों किया जाएगा?
उद्योगपति रतन टाटा (Ratan Tata) पारसी समुदाय से आते थे। उनके निधन के बाद फैसला किया गया है कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू परंपराओं के अनुसार किया जाएगा। इसके पीछे कई सारे कारण हैं। दरअसल पारसी समुदाय की तादाद धीरे-धीरे कम हो गई है। बता दें कि पारसी समुदाय के लोगों के अंतिम संस्कार (Ratan Tata Last Rites Ceremony) के लिए लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा अंतिम संस्कार के लिए जरूरी चील व गिद्ध जैसे भक्षक पक्षियों की तादाद भी कम हो गई जिससे पार्थिव शरीर कायदे से समाप्त नहीं हो पाता। यही वजह है कि पारसी समुदाय के लोग अब धीरे-धीरे हिंदू रीति-रिवाजों को अपनाकर अंतिम संस्कार कर रहे हैं।
अंतिम संस्कार के लिए पारसी समुदाय का नियम क्या है?
हिंदू, मुस्लिम, ईसाई या अन्य धर्मों की तुलना में पारसी समुदाय (Parsi Community) के लिए अंतिम संस्कार का नियम थोड़ा मुश्किल है। पारसी समुदाय की मान्यता के अनुसार वे शरीर को प्रकृति की देन मानते हैं और यही वजह है कि मौत के बाद वे पार्थिव शरीर को फिर प्रकृति को सौंपने का काम करते हैं। इसके तहत ना ही तो पारसी समुदाय के लोगों के जलाया जाता है और ना ही दफनाया जाता है। उनके पार्थिव शरीर (Ratan Tata Dead Body) को टावर ऑफ साइलेंस (शवदाह गृह) या दखमा में रख देते हैं, जहां खुले में चील और गिद्ध पार्थिव शरीर को खाते हैं। ये पारसी समुदाय का एक रिवाज भी माना जाता है।
हालाकि बीतते समय के साथ टावर ऑफ साइलेंस और चील-गिद्धों का मिलना मुश्किल होता जा रहा है। यही वजह है कि पारसी समुदाय के लोग अब अपनी परंपरा को छोड़ हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार अंतिम संस्कार करते नजर आते हैं।