Ancient Indian DNA: प्राचीन भारतीय समुदाय के इतिहास और विरासत का पता लगाने के लिए भारत सरकार की ओर से एक शोध किए जाने की खबर है। इस शोध (रीसर्च) के माध्यम से ये पता लगाया जाएगा कि प्राचीन समय (Ancient Indian DNA) में लोग कहां से आए? वे कैसे रहते थे? पर्यावरणीय परिवर्तनों ने उनके इतिहास और विरासत को कैसे आकार दिया?
इसके लिए आधुनिक जीनोमिक्स (Modern Genomics) का उपयोग करते हुए एक तुलनात्मक वैज्ञानिक अध्ययन (Research) किए जाने की खबर है। दावा किया जा रहा है कि इस शोध के माध्यम से दूध का दूध और पानी का पानी हो सकेगा और साथ ही भारतीय DNA (डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल) की वास्तविक उत्तपत्ति और इसके इतिहास व विरासत में पता लगाया जा सकेगा।
प्राचीन कंकाल अवशेषों का होगा इस्तेमाल
दक्षिण एशिया के जनसंख्या इतिहास के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए एक अध्ययन किया जाना है। इसके लिए भारत और पाकिस्तान के विभिन्न पुरातात्विक स्थलों (Ancient Place) से एकत्र किए गए 300 प्राचीन कंकाल अवशेषों का इस्तेमाल किया जाएगा। इसमें कंकाल, हड्डियों के टुकड़े और दांत भी शामिल हैं जिनकी मदद से मनुष्यों की उत्तपत्ति और उनके इतिहास व विरासत का पता लगाया जा सकेगा।
AnSI के माध्यम से होगा अध्ययन
प्राचीन भारतीय समुदाय की जड़ का पता लगाने के लिए भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (AnSI) के माध्यम से एक अध्ययन किया जा रहा है। इसके अध्ययन के लिए एएनएसआई द्वारा बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान, (लखनऊ) का भी सहयोग लिया जा रहा है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार इस शोध के लिए प्राचीन और आधुनिक जीनोमिक्स का उपयोग कर एक तुलनात्मक अध्ययन किया जाएगा ताकि इतिहास के बारे में जानकारी हासिल किया जा सके।
रिपोर्ट के मुताबिक इस अध्ययन के लिए सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों जैसे नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश), हड़प्पा और मोहनजोदड़ो, बुर्जहोम, मास्की (कर्नाटक), रोपड़ (पंजाब) और लोथल (गुजरात) में आजादी से पहले और बाद में की गई खुदाई के दौरान एकत्र किए गए अवशेष का इस्तेमाल हो सकेगा।
शोध से क्या-क्या पता लगेगा?
भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (AnSI) द्वारा किए जाने वाले शोध के माध्यम से प्राचीन समुदाय के जड़ व उनके विषय में कई पहलुओं को जानने का लक्ष्य है। इसके माध्यम से प्राचीन खान-पान, रहन-सहन की स्थिति, बीमारियों की व्यापकता, पर्यावरण के प्रति अनुकूलन के बारे में भी सुराग मिलेंगे। वहीं अध्ययन से ये भी पता लगाया जा सकेगा कि लोगों की उत्तपत्ति कहां से हुई और प्राचीन समय में उनका रहन-सहन क्या था?
इस अध्ययन का लक्ष्य प्राचीन भारतीय आबादी के बारे में विस्तार से समझना और इतिहास की गहरी और सटीक कहानी सामने लाना है। इस अध्ययन के प्रकाश में आने के बाद मनुष्यों की आबादी में आनुवंशिक और सांस्कृतिक विकास की समझ को भी बढ़ावा मिल सकेगा और भारतीय डीएनए (डीऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल) की वास्तविक सच्चाई के बारे में पता लग सकेगा। दावा किया जा रहा है कि अध्ययन की ये रिपोर्ट 2025 तक प्रकाश में आ सकेगी और लोग इसके बारे में तथ्यात्मक रूप से सच्चाई जान सकेंगे।