Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने आज एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसकी चर्चा चारों तरफ हो रही है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं भी गुजारा भत्ता पाने के लिए कानून की मदद ले सकती है। कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ कहा कि धर्म से इसका कोई मतलब नहीं है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने यह फैसला सुनाया। हालांकि इसी बीच राजीव गांधी के एक फैसले की भी चर्चा हो रही है। वहीं कई विशेषज्ञों का मानना है कि यूसीसी कानून से पहले यह सही दिशा में एक कदम है।
क्या था पूरा मामला
आपको बता दें कि एक मुस्लिम शख्स ने हैदराबाद हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी जिसमे उसे अपनी पूर्व पत्नी को महंगाई भत्ता देना था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसले को बरकरार रखा। गौरतलब है कि कोर्ट ने मुस्लिम शख्स के वकील की सभी दलीलों को खारिज कर दिया और हैदराबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। वहीं अब इस फैसले को ऐतिहासिक बताया जा रहा है।
कोर्ट ने क्या कहा?
Supreme Court ने साफ शब्दों में कहा कि गुजारा भत्ता देना दान नहीं बल्कि शादीशुदा महिलाओं का मूलभूत अधिकार है। यह अधिकार धर्म की सीमाओं से परे है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फैसला सुनाते हुए कहा कि हम इस अपील को खारिज करते हैं, हमारा मुख्य निष्कर्ष ये है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 सभी महिलाओं पर लागू होगी।
यूसीसी कानून से पहले सही दिशा में कदम
गौरतलब है कि यूसीसी कानून के तहत सभी नागरिकों को सामान अधिकार दिया गया चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो। सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐतिहासिक फैसला सुनाने के बाद अब विशेषज्ञों द्वारा इससे यूसीसी कानून के रूप में ही देखा जा रहा है क्योंकि कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि गुजारा भत्ता किसी भी धर्म के आधार पर नहीं होगा। यह सभी महिलाओं के लिए लागू होगा।
राजीव गांधी के फैसले की क्यों हो रही है चर्चा
दरअसला 1985 में, सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मदाबाद में एक मुस्लिम महिला के गुजारा भत्ते के अधिकार को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया था । यह मामला अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम था। हालाँकि, राजीव गांधी सरकार ने 1986 में उपर्युक्त कानून के साथ फैसले को पलट दिया था।