Bihar Caste Census: बिहार सरकार की ओर से जब से जाति आधारित गणना के आंकड़े सार्वजनिक किए गए हैं इसको लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। विभिन्न राजनीतिक दल इस मामले में अपनी-अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करा रहे हैं और आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। अब इसी कड़ी में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव ने आरक्षण के दायरा को बढ़ाने के संबंध में बड़ी बात कह दी है। लालू यादव मंगलवार की रात लैंड फॉर जॉब मामले में सुनवाई के लिए पटना से दिल्ली एयरपोर्ट पर पहुंचे। इस दौरान उन्होंने आरक्षण के दायरे को बढ़ाए जाने के संबंध में जवाब देते हुए कहा कि जैसे आंकडे़ सामने आए हैं उसी अनुपात में आरक्षण का दायरा भी बढ़ाया जाएगा। बता दें कि बिहार सरकार द्वारा जारी किए गए जाति आधारित गणना के आंकड़ो के सियासी मायने भी हैं। इसको लेकर कयास लगाए जा रहे हैं कि ये आने वाले समय में बिहार की सियासी समीकरण को पूरी तरह से प्रभावित कर सकता है। अब इसको लेकर कहा जा रहा है कि जल्द ही बिहार में फिर कुछ बड़ा निर्णय देखने को मिल सकता है।
वहीं लैंड फॉर जॉब स्कैम मामले में उन्होंने कहा कि ये सब होता रहता है। जब कोई गलत काम किया होगा तब ना डरेंगे। बता दें कि दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने इस मामले में आज सुनवाई करते हुए लालू यादव के साथ उनके पूरे परिवार को राहत देते हुए उन्हें जमानत देने का फैसला लिया है।
आबादी की अनुपात में बढ़ेगा आरक्षण का दायरा
दरअसल लालू यादव मंगलवार का देर रात को पटना से दिल्ली पहुंचे। इस दौरान उन्होंने एयरपोर्ट पर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि हमारी सरकार ने बिहार में जाति आधारित गणना कराई है। अब ये पूरे देश में कराया जाना चाहिए ताकि इससे देश के दबे-कुचले वर्ग को वाजिब लाभ मिल सके। वहीं आरक्षण का दायरा बढ़ाने वाले सवाल का जबाव देते हुए उन्होंने कहा कि जैसे आंकड़े सामने आए हैं अब उसके अनुपात में आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाएगा। वहीं उन्होंने भाजपा पर निशाना भी साधा और कहा कि इन्होंने लंबे समय तक हमारा हक मारा है और अब इनकी हकमारी पकड़ी गई है।
जातिय गणना के मायने
बता दें कि हिन्दी पट्टी राज्यों के साथ अन्य सियासी सूबों में भी जातिय गणना के मायने बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसको लेकर दावा किया जा रहा है कि अब इसका प्रभाव सूबे की सियासत में देखने को मिलगा। बिहार में इसको लेकर लंबे अरसे से मांग की जा रही थी। अब सरकार ने इस बहुप्रतिक्षित गणना के आंकड़ों को जारी किया है। बता दें कि इसकी राह आसान नहीं रही है। पटना हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में इसे चुनौती दी गई है। हालाकि इसके आंकड़े जारी होने के बाद से सूबे में सियासी दलों की होड़ मच गई है और सबके दावे हैं कि हमारी सरकार ने ही जाति आधारित गणना कराने के लिए कदम उठाए हैं।
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान शुरु हुई थी जातिय गणना
बता दें कि भारत में आजादी से पूर्व ब्रिटिश शासनकाल के दौरान ही वर्ष 1872 में जाति आधारित गणना की शुरुआत हुई थी। इसके बाद ये क्रम लगातार 1931 तक चलता रहा। हालाकि जब देश आजाद हो गया और 1951 में आजाद भारत में जनगणना हुई तो इसमें केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से जुड़े लोगों के आंकड़े ही जारी किए गए। उसके बाद से भारत सरकार की ओर से जातिगत जनगणना से परहेज किया जाने लगा। अब इस क्रम में इसके लिए लगातार मांग भी उठने लगी और 1970 से 1980 के दशके के बीच देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न राजनीतिक दलों का उदय हुआ जिनकी राजनीति जाति पर ही आधारित थी।
वहीं इसके बाद से वर्ष 1990 में वी.पी सिंह की सरकार द्वारा मंडल कमीशन के सिफ़ारिश को लागू कर इसे ऐतिहासिक कदम बताया गया। अब इसके बाद से लगातार जातिगत जनगणना को लेकर आवाज उठती रही है। राजनीतिक दलों की मांग है कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर कराकर पिछड़ों व अति पिछड़ा वर्ग को उनका वाजिब हक दिया जाए।
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