Bihar Politics: राजनीति संभावनाओं का खेल है और यहां कब क्या हो जाए इस संबंध में कुछ नहीं कहा जा सकता। इन दिनों बिहार की सियायत को लेकर चर्चाओं का दौर जारी है। सूबे के मुख्यमंत्री भाजपा को लेकर तरह-तरह की बयानबाजी करते नजर आ रहे हैं जिसको लेकर गहमा-गहमी बढ़ गई है। बीते दिनों सीएम नीतीश कुमार ने एक बयान देते हुए कहा कि हमारी दोस्ती कभी खत्म नहीं होगी। जब तक जीवित रहेंगे, तब तक आप लोगों (BJP)से संबंध बना रहेगा और हम सब मिलकर काम करेंगे। अब नीतीश कुमार के इस बयान को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ गई है और कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार कहीं फिर वर्ष 2017 की तर्ज पर राजद का साथ छोड़ने की तैयारी में तो नही हैं।
वर्ष 2017 में छोड़ा था राजद का साथ
नीतीश कुमार को राजनीति का माहिर खिलाड़ी कहा जाता है। बता दें कि नीतीश कुमार ने वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव अपने पुराने सहयोगी लालू यादव और कांग्रेस के साथ महागठबंधन कर लड़ा। इस चुनाव में उन्हें जीत भी मिली थी और राजद कोटे से लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था। सब कुच ठीक-ठाक चल रहा था कि अचानक अप्रैल 2017 दोनों दलों के बीच खटपट शुरु हो गई। खटपट का ये दौर जारी रहने पर नीतीश कुमार ने सबको चौंकाते हुए जुलाई 2017 में राजद का साथ छोड़कर भाजपा से सरकार बनाने का निर्णय लिया। नीतीश कुमार के इस फैसले से उनके प्रतिद्वंदी चौंक गए थे और राजनीति का महारथी बताया था।
भाजपा से तोड़ा था दशको का गठबंधन
बिहार में भाजपा व नीतीश कुमार की पार्टी जदयू गठबंधन के साथी थे। सियासी टिप्पणीकारों की माने तो वर्ष 2014 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करना उन्हें रास नहीं आया। नीतीश कुमार ने इसके तुरंत बाद बड़ा ऐलान करते हुए भजपा से अपना गठबंधन तोड़ने का निर्णय लिया था। इसके बाद से उन्होंने वर्ष 2015 में राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी।
7 दिन के लिए सीएम बने थे नीतीश कुमार
नीतीश कुमार अपनी सियासी पारी शुरु करने के दौरान लालू यादव के प्रखर साथी थे। हालाकि व्यक्तिगत मतभेदों के चलते उन्होंने वर्ष 1994 में लालू का सात छोड़ने का निर्णय लिया और जॉर्ज फ़र्नान्डिस के साथ मिलकर समता पार्टी का गठन किया था। 1995 में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव में उन्हें करारी हार मिली थी जिसके बाद उन्होंने 1996 में बीजेपी का साथ कर लिया। इसके बाद से वर्ष 2000 में नीतीश कुमार भाजपा की सहयोग से पहली बार 7 दिनों के लिए सीएम बने थे। हालाकि बहुमत नहीं साबित कर पाने के कारण ये सरकार चल नहीं पाई। इसके बाद से समता पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) बन गई और नीतीश ने अपनी लड़ाई जारी रखते हुए 2005 चुनाव में जीत दर्ज कर सीएम पद की शपथ ली। नीतीश और भाजपा के गठबंधन का ये क्रम 2014 तक चलता रहा और इसी वर्ष लोकसभा चुनाव के वक्त गठबंधन में दरार आई थी।
बयान के मायने
नीतीश कुमार अब इशारों-इशारों में ही भाजपा नेताओं से दोस्ती को दौर को याद कर रहे हैं। ऐसे में लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि कहीं फिर नीतीश कुमार अपने पुराने सहयोगियों की ओर रुख करने कीतो नहीं सोच रहे। हालाकि नीतश कुमार इस तरह की किसी भी संभावनाओं को सिरे से नकार रहे हैं। सियासी टिप्पणीकारों का भी कहना है कि नीतीश कुमार स्थिर हैं और 2024 लोकसभा व आगामी वर्ष होने वाले बिहार विधानसभा का चुनाव राजद के साथ ही लड़ेंगे। हालाकि राजनीति संभावनाओं का खेल है और इसी क्रम में चर्चाओं का ये दौर जारी रहने वाला है।
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