Ved Pratap Vaidik Death: वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का आज यानी मंगलवार को निधन हो गया। वैदिक ने 78 साल की उम्र में अंति सांस ली। वैदिक की मौत की जानकारी उनके पीए ने दी। उन्होंने बताया कि मंगलवार सुबह वे बाथरूम में फिसल गए थे। इसके बाद उनको नजदीकी अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उन्हें मृत (Ved Pratap Vaidik Death) घोषित कर दिया।
इंदौर में हुआ था जन्म
पत्रकार वेद प्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को हुआ था। वैदिक का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर में हुआ था। उन्होँने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में JNU से पीएचडी की थी। वे करीब 4 साल तक दिल्ली में राजनीति शास्त्र के शिक्षक भी रहे। वैदिक फिलॉस्फी और राजनीतिशास्त्र में भी दिलचस्पी रखते थे।
50 से अधिक देशों की यात्रा की थी (Ved Pratap Vaidik Death)
बता दें, वैदिक बहुत ही योग्य संपादकों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने करीब 12 सालों तक नवभारत टाइम्स के एडिटोरियल संपादक के रूप में काम किया था। इसके अलावा उन्होंने अफगानिस्तान पर शोध भी किया था। वैदिक कई देशों की यात्रा भी की थी। वे अफगानिस्तान के अलावा लंदन, मॉस्को सहित 50 से अधिक देशों की यात्रा कर चुके थे।
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हाफिज सईद के इंटरव्यू से मचा था हंगामा
गौर हो कि वेद प्रताप वैदिक हिंदी भाषा के जाने-माने पत्रकार थे। वैदिक का मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड और आतंकी हाफिज सईद का इंटरव्यू काफी चर्चा में रहा था। इस इंटरव्यू करने के बाद वे आखिरी बार अखबार की सुर्खियों में आए थे। क्योंकि हाफिज सईद के इंटरव्यू के बाद पूरे देश में हंगामा मच गया था।
देशद्रोह का मुकदमा हुआ था दर्ज
हाफिज सईद के इंटरव्यू के बाद दो सांसदों ने उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज करवाया था। दोनों सांसदों ने वेद प्रताप वैदिक के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा चलाकर उनको गिरफ्तार करने की मांग की थी। इसके बाद वैदिक ने टिप्पणी कर कहा था कि दो सांसद ही नहीं पूरे 543 सांसद सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करें। उन्होंने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि था सभी 543 सांसद एक प्रस्ताव पारित करें और मुझे फांसी पर चढ़ा दें. उन्होंने कहा था कि- ‘मैं ऐसी संसद पर थूकता हूं.’
13 साल की उम्र में गए थे जेल
सिर्फ 13 साल की उम्र में उन्होंने हिन्दी के लिए सत्याग्रह किया था और पहली बार जेल गए थे। वैदिक ने अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति पर अपना शोध ग्रन्थ हिन्दी में लिखा था। इस कारण से जेएनयू ने उनकी छात्रवृत्ति रोक दी थी. साथ ही बाहर का रास्ता भी दिखा दिया था। संसद में इसको लेकर 1966-67 में काफी हंगामा भी हुआ था। इसके बाद इंदिरा गांधी सरकार की पहल पर जेएनयू के नियमों में बदलाव किया गया था। साथ ही वैदिक को वापस लिया गया था।