Extreme Poverty in India: अमेरिकी थिंक टैंक ब्रुकिंग्स ने एक रिपोर्ट में कहा कि भारत ने अब आधिकारिक तौर पर Extreme Poverty को समाप्त कर दिया है, जिसे कुल गरीबी अनुपात में तेज गिरावट और घरेलू खपत में भारी वृद्धि के माध्यम से देखा जा सकता है।
आपको बता दें कि सुरजीत भल्ला और करण भसीन द्वारा लिखित रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पुनर्वितरण पर सरकार की मजबूत नीति का परिणाम है। जिससे पिछले दशक में भारत में मजबूत समावेशी विकास हुआ है। चलिए आपको इस लेख की मदद से बताते है कि भारत ने कैसे अधिकारिक तौर पर Extreme Poverty in India को समाप्त कर दिया है।
Extreme Poverty in India दूर करने में कैसे मिली मदद?
2011 पीपीपी यूएसडी 1.9 गरीबी रेखा के लिए हेडकाउंट गरीबी अनुपात (एचसीआर) 2011-12 में 12.2 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 2 प्रतिशत हो गया है। जो प्रति वर्ष 0.93 प्रतिशत अंक (पीपीटी) के बराबर है। ग्रामीण गरीबी 2.5 प्रतिशत थी जबकि शहरी गरीबी घटकर 1 प्रतिशत रह गई। पीपीपी यूएसडी 3.2 लाइन के लिए, एचसीआर 53.6 प्रतिशत से घटकर 20.8 प्रतिशत हो गया है।
थिंक टैक के अनुसार विशेष रूप से, ये अनुमान सरकार द्वारा लगभग दो-तिहाई आबादी को दिए जाने वाले मुफ्त भोजन (गेहूं और चावल) को ध्यान में नहीं रखा गया हैं, न ही सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा के उपयोग को ध्यान में रखा गया हैं। इसमें कहा गया है कि उच्च गरीबी रेखा पर एचसीआर में गिरावट उल्लेखनीय है, क्योंकि पहले भारत को गरीबी के स्तर में इतनी गिरावट देखने में 30 साल लग जाते थे, जबकि भारत ने 11 साल में यह कारनामा कर दिखाया है।
भारत का कुल गरीबी अनुपात
ब्रुकिंग्स रिपोर्ट ने 1977-78 तक 1.9 यूएसडी पीपीपी और 3.2 यूएसडी पीपीपी दोनों के लिए भारत के हेडकाउंट गरीबी अनुपात को दर्शाने वाला एक चार्ट प्रस्तुत किया है। बता दें कि ब्रुकिंग्स ने शौचालयों के निर्माण के लिए राष्ट्रीय मिशन और बिजली, आधुनिक खाना पकाने के ईंधन और हाल ही में पाइप से पानी की खपत बढ़ाने वाली नीतियों के बीच सार्वभौमिक पहुंच सुनिश्चित करने के प्रयासों की सराहना की। रिपोर्ट में उद्धृत किया गया है कि 15 अगस्त, 2019 तक भारत में पाइप से पानी तक ग्रामीण पहुंच 16.8 प्रतिशत थी और वर्तमान में यह 74.7 प्रतिशत है। सुरक्षित जल तक पहुंच से कम होने वाली बीमारी से परिवारों को अधिक आय अर्जित करने में मदद मिल सकती है।
मोदी सरकार की नीतियों का असर
मोदी सरकार की तरफ से गरीबी दूर करने के लिए कई तरह की योजना चलाई जा रही है। और उसका असर भी देखने को मिल रहा है। चलिए आपको बताते है कुछ प्रमुख योजनाओं के बारे में
प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना – ग्रामीण क्षेत्रों में 13 लाख आवास इकाइयां उपलब्ध कराने के साथ-साथ सभी के लिए आवास इकाइयां बनाना। लोगों को रियायती दरों पर ऋण उपलब्ध कराना। मांग पर रोजगार प्रदान करके और हर साल विशिष्ट गारंटीकृत मजदूरी रोजगार के माध्यम से परिवारों को मजदूरी रोजगार के अवसर बढ़ाना।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) – यह अधिनियम प्रत्येक ग्रामीण परिवार को हर साल 100 दिनों का सुनिश्चित रोजगार प्रदान करता है। प्रस्तावित नौकरियों में से एक-तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। केंद्र सरकार राष्ट्रीय रोजगार गारंटी कोष भी स्थापित करेगी।
प्रधानमंत्री जनधन योजना- इसका उद्देश्य सब्सिडी, पेंशन, बीमा आदि का प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण करना था और 1.5 करोड़ बैंक खाते खोलने का लक्ष्य प्राप्त किया। यह योजना विशेष रूप से बैंक रहित गरीबों को लक्षित करती है।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना- यह श्रम बाजार में नए प्रवेशकों, विशेष रूप से श्रम बाजार और दसवीं और बारहवीं कक्षा छोड़ने वालों पर ध्यान केंद्रित करता है।
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमयूवाई) – इसमें गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं को 50 मिलियन एलपीजी कनेक्शन वितरित करने की परिकल्पना की गई है।
मोदी सरकार के कार्यकाल में कितने लोग गरीबी रेखा से बाहर आए
नीति आयोग के रिपोर्ट के अनुसार पिछले नौ वर्षों में भारत में कुल 24.82 करोड़ व्यक्ति बहुआयामी गरीबी से बच गए, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। नीति आयोग के चर्चा पत्र 2005-06 से भारत में बहुआयामी गरीबी के निष्कर्षों के अनुसार, भारत में बहुआयामी गरीबी 2013-14 में 29.17% से घटकर 2022-23 में 11.28% हो गई, लगभग 24.82 करोड़ लोग इससे बाहर निकल गए।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार की कुछ पहल – जैसे पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत, उज्ज्वला और अन्य योजनाओं ने अभाव के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करने में “महत्वपूर्ण भूमिका” निभाई है। इसमें यह भी कहा गया है कि भारत 2030 से पहले ही बहुआयामी गरीबी को आधा करने का SDG(Sustainable Development Goals) हासिल कर लेगा।