Odisha News: कहते हैं, ‘जहां चाह होती है वहां राह निकल ही आती है’। ओडिशा की रहने वाली कल्पना का संघर्ष भी कुछ इसी कहावत के जैसा है। दिव्यांग होने के बादजूद कल्पना ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। कल्पना ने बर्लिन में आयोजित साइकिलिंग प्रतियोगिता में Silver मेडल जीतकर भारत के साथ-साथ ओडिशा और अपने परिवार का नाम रोशन किया है।
बेहद संघर्षपूर्ण रहा कल्पना का जीवन
कल्पना की ये कहानी आप तक पहुंचाना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उनका जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा है। कल्पना बेहद ही गरीब परिवार से आती हैं। जिसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि उनके पास साइकिल खरीदने तक के पैसे नहीं थे। लेकिन, कल्पना ने हार नहीं मानी और अपने एक दोस्त की साइकिल के साथ नियमित रूप से अभ्यास किया। जिसके बाद कल्पना ने राष्ट्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में शानदार प्रदर्शन किया। अपने इन्हीं प्रदर्शनों की बदौलत उन्हें बर्लिन जाने का मौका मिला। जहां उन्होंने अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में रजत पदक हासिल किया। उन्होंने अपनी जिंदगी में कई सारी बाधाओं को पार करते हुए ये मेडल जीता है।
‘मुझे स्वर्ण जीतने की थी उम्मीद’
एक निजी चैनल को दिए इंटरव्यू में कल्पना ने कहा, “मुझे स्वर्ण जीतने की उम्मीद थी। हालांकि, बर्लिन में हमें जो खाना दिया गया वह अच्छा नहीं था। मैंने लगभग खाली पेट ही प्रतियोगिता में भाग लिया। हालांकि, मैं बहुत खुश हूं कि दुनिया भर में इतने सारे प्रतिभागियों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच मैं दूसरे स्थान पर रही।” कल्पना की इस प्रतिभा को सबसे पहले विवेकानन्द मोहंती ने पहचाना था, जो उनके कोच भी हैं। जिसके बाद विवेकानन्द के मार्गदर्शन से कल्पना ने 2017 में खेलो इंडिया गेम्स में शानदार प्रदर्शन किया। उसके बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
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