India Emergency: आज ही के दिन यानि 25 जून 1975 को उस वक्त की मौजूदा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की थी। इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के कई नेताओं ने इमरजेंसी पर 50 साल पूरे होने पर सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। चलिए आपको बताते है कि आखिर इमरजेंसी क्यों लगाई गई थी। इसे लोकतंत्र का सबसे काला अध्याय क्यों कहा जाता है।
पीएम मोदी ने जाहिर की प्रतिक्रिया
आपातकाल को लेकर पीएम मोदी ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा कि “आज का दिन उन सभी महान पुरुषों और महिलाओं को श्रद्धांजलि देने का दिन है जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया। DarkDaysOfEmergency हमें याद दिलाती है कि कैसे कांग्रेस पार्टी ने बुनियादी स्वतंत्रता को नष्ट कर दिया और भारत के संविधान को कुचल दिया, जिसका हर भारतीय बहुत सम्मान करता है।
जिन लोगों ने आपातकाल लगाया, उन्हें हमारे संविधान के प्रति अपना प्यार जताने का कोई अधिकार नहीं है। ये वही लोग हैं जिन्होंने अनगिनत मौकों पर अनुच्छेद 356 लगाया, प्रेस की स्वतंत्रता को नष्ट करने वाला विधेयक लाया, संघवाद को नष्ट किया और संविधान के हर पहलू का उल्लंघन किया”।
क्यों लगाई गई थी इमरजेंसी?
आपको बता दें कि उस वक्त की मौजूदा प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह निर्णय लिया था। दरअसल 12 जून 1975 को कोर्ट ने इंदिरा गांधी के रायबरेली से निर्वाचन रद्द कर दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने अगले 6 सालों के लिए चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया था। वहीं इसका दूसरा सबसे बड़ा कारण था इंदिरा सरकार के खिलाफ असंतोष। पूरे देश में अलग – अलग जगहों पर मौजूदा सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन चालू हो गया था। जयप्रकाश नारायण कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे और उन्हें पूरे देश से भरपूर समर्थन मिल रहा था। इसी को देखते हुए इंदिरा गांधी ने बिना कैबिनेट की मीटिंग के ही राष्ट्रपति से आपातकालीन की मांग कर दी थी। जिसके बाद 25 तारीख 1975 की आधी रात से ही इमरजेंसी को लागू कर दिया गया था।
इसे लोकतंत्र का काला अध्याय क्यों कहा जाता है?
आपातकाल आजाद भारत के इतिहास में काला अध्याय इसलिए माना जाता है क्योंकि मेंटनेंस ऑफ इंटर्नल सिक्योरिटी एक्ट यानि मीसा के तहत लोगों को जेल में डालने की सरकार को बेलगाम छूट मिल गई। नागरिक से सभी प्रकार के अधिकार छीन लिए गए। विपक्ष के नेताओं को जेल में डाला जा रहा था। दिल्ली, बहादुर शाह मार्ग पर स्थित अखबार दफ्तरों की बिजलियां काट दी गयी, जिससे अखबार न छपे और खबर बाहर न आ सके। विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हो चुकी थी जिसमें प्रमुख रूप से जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी समेत कई अन्य विपक्षी नेता थे।
जून 1975 से मार्च 1977 के इस दौर में लोगों पर खूब ज्यादती की गई। विपक्षी विचारधारा वालों को खूब प्रताड़ित किया गया। उस वक्त आम लोगों के अधिकार के पूरी तरह से हनन किया जा रहा था।
1977 में समाप्त हुए इमरजेंसी
लगभग 21 महीने आपातकाल लागू होने के बाद आखिर में कांग्रेस सरकार को झूकना पड़ा। 21 मार्च 1977 को आपातकाल को खत्म कर दिया गया। इमरजेंसी हटने के बाद भारत के 6 लोकसभा चुनाव हुए। जहां लोगों ने कांग्रेस को पूर्ण रूप से नकार दिया। जनता ने सत्ता की चाही जनता पार्टी के हाथों में दे दी।