Indo-China LAC: भारत ने अरुणाचल प्रदेश के दूरस्थ एलएसी सटे गांवों को बुनियादी ढांचागत सुविधाओं से जोड़ने के लिए कमर कस ली है। केंद्र की मोदी सरकार ने अब सीमा के हर गांव को टेलीकॉम के साथ ही रेल-सड़क कनेक्टिविटी से जोड़ने के अभियान पर आगे बढ़ गया है। इसमें सेला सुरंग का निर्माण कार्य में तेजी से पूरा किया जा रहा है, ताकि देश के इस हिस्से के लोग शेष भारत से जुड़ सकें। भारत सरकार अपने इस एक कदम से चीन की अरुणाचल को हड़पने की सारी साजिशों को ध्वस्त कर देगा।
जानें क्या है मामला
बता दें चीन अरुणाचल प्रदेश से सटी एलएसी सीमा के गांवों पर दावा करके इसे वो अपना एरिया बताता है। वह समय-समय इन इलाकों के नाम बदलने की हरकत कर दक्षिण तिब्बत होने का हिस्सा बताता है। इस महीने के शुरु में भी उसने अरुणाचल की कुछ जगहों का नाम बदल कर उसे अपने हिस्से में जोड़ा था। लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस पर पलटवार करते हुए सिरे से खारिज कर दिया था। इसके बाद भारत के द्वारा अरुणाचल में रखी जी-20 की एक मीटिंग का चीन ने बायकॉट कर दिया था। लेकिन भारत को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। भारत ने भी चीन को अब उसी की भाषा में जवाब देने के लिए अपनी तैयारियों की रफ्तार को तेज कर दिया है।
सेला सुरंग के निर्माण में तेजी
इसी कनेक्टिविटी अभियान में प्रदेश को सड़कों के नेटवर्क के माध्यस से जोड़ने में सेला सुरंग का निर्माण एक महत्वपूर्ण परियोजनाओं में से एक है। जो अरुणाचल के तवांग को असम के गुवाहाटी से जोड़ने का रणनीतिक काम करेगी। सेला सुरंग परियोजना की खुदाई का काम इस साल की शुरुआत में ही पूरा कर लिया गया था। अब इस सुरंग के निर्माण कार्य को 2024-25 तक तेजी से पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। यह सुरंग 13 हजार फीट पर बनी दुनिया की सबसे बड़ी डबल लेन सुरंग होगी। जो सेना डप्लॉयमेंट के हिसाब से रणनीतिक रूप से गेमचेंजर साबित होगी।
सेला सुरंग बनाने की आवश्यकता
बता दें अभी भारतीय सेना को तवांग पहुंचने के लिए बालीपारा-चारीदुआर रोड होकर जाना पड़ता है, जो सर्दियों के मौसम में भारी बर्फबारी से संपर्क कट जाता है। जब कि इस सुरंग के बन जाने से तवांग की दूरी 8-10 किमी कम हो जाएगी। साथ ही सेला पास अभी चीनियों की सीधी निगरानी में हैं जिसके कारण भारतीय सेना की रसद सामग्री को आसानी से ट्रैक कर सकते हैं। 1555 मीटर लंबी टनल चीन पर रणनीतिक बढ़त प्रदान करेगी।
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