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Ujjain Holi: इस अनोखी होली में वेद मंत्रों का है बड़ा महत्व, जानें क्यों अलग है महाकाल नगरी की होली

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Ujjain Holi: भारत में धूमधाम से मनाया जाने वाला होली पर्व यूं तो उत्तर भारत का मनाया जाने वाला त्यौहार है। उसमें भी बृज परंपरा की होली का एक अलग ही आनंद है लेकिन समूचे भारत में मनाए जाने वाले होली के त्यौहार देश के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न परंपराओं को समेटे हुए मनाया जाता है। इसी में से एक बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में मनाई जाने वाली होली भी अपनी अलग प्राचीन परंपरा और 5000 कंड़ों से सजाई होलिका के लिए प्रसिद्ध है। जिसे देखने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं।

जानें क्या है उज्जैन की होली परंपरा

उज्जैन बाबा महाकाल की एक तीर्थ नगरी है। जिसे काशी की तरह ही कई परंपराओं और पौराणिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है। इसी तरह यहां की परंपराओं में वेदमंत्रों का ऐसा प्राचीन चलन है कि एक परंपरा के रुप में यहां की होली में इसका उपयोग है। आपको बता दें महाकाल की नगरी उज्जैन के सिंहपुरी सजने वाली होली 5000 हजार कंडों से तैयार की जाती थी और ये कंडे यहां के रहने वाले गुरु मंडली के नाम से प्रसिद्ध ब्राह्मण वेद मंत्रों के माध्यम से तैयार करते हैं। ये होलिका उत्तर भारत की लकड़ियों से तैयार की जाने वाली होलिका से पूरी तरह अलग सिर्फ कंडों से ही तैयार होती है। इसको गुलाल से सजाया जाता है। इस होलिका दहन की सबसे बड़ी खासियत यह है कि दहन से पूर्व चारों वेदों के जानकार ब्राह्मण प्रदोष काल में अलग अलग मंत्रों से पूजन विधि को पूर्ण करते हैं और महिलाओं के द्वारा पूजन क्रिया के पश्चात चकमक पत्थर से ही होलिका का दहन होता है।

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राजा भृतिहरि से भी जुड़ा है इतिहास

मान्यता है कि कई सौ वर्षों से वैदिक ब्राह्मणों के माध्यम से कंडों के निर्माण के पीछे लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होने से जोड़ा जा रहा है और भारतीय मनीषियों ने हजारों साल पहले ही ये सिद्ध कर दिया था कि गोबर के उपलों से पंच तत्वों की शुद्धि होती है। तीन हजार साल पहले से स्थापित इस होली को उल्लेश श्रुत परंपरा का माना जाता है जब उज्जैन के राजा भृतहरि भी इस होलिका दहन में आते थे।

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