Nitish Kumar: कहते हैं सियासत संभावनाओं का खेल है और यहां कब क्या हो जाए इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल है। वर्तमान समय की बात करें तो देश के सभी 543 लोक सभा सीटों पर संपन्न हुए चुनाव के नतीजें जारी कर दिए गए हैं जिसके बाद नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार बनाने की तैयारी में है। इसी तैयारी के बीच राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहे हैं और सुर्खियों में छाए हैं बिहार के मुख्यमंत्री व कद्दावर नेता नीतीश कुमार। दरअसल इस चुनाव में जेडीयू को 12 सीटें मिली हैं जो कि समर्थन के लिहाज से एनडीए ले लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं।
नीतीश कुमार के पुराने सियासी इतिहास को लेकर कयासबाजी का दौर जारी है और दावा किया जा रहा है कि कहीं ‘सुशासन बाबू’ पहले की तरह फिर पलटी न मार दें। हालाकि खुद सीएम नीतीश कुमार इस तरह के सभी कयासबाजी को सिरे से नकार चुके हैं और एनडीए को बिना शर्त समर्थन देने की बात कर चुके हैं। ऐसे में आइए हम आपको नीतीश कुमार के सियासी बैकग्राउंड के बारे में विस्तार से बताते हैं और साथ ही इसकी शिनाख्त करते हैं कि आखिर क्यों उन्हें भारत के सियासत में पलटी मारने वाला नेता कहा जाता है?
राजनीति के माहिर खिलाड़ी हैं बिहार CM
उत्तर भारत के प्रमुख सियासी राज्य, बिहार की राजधानी पटना से सटे बख़्तियारपुर में 1 मार्च 1951 को नीतीश कुमार का जन्म हुआ था। उन्होंने बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की और बिहार की राजनीति में दिलचस्पी लेने लगे। 1970 के दशक में बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच नीतीश कुमार ने कद्दावर समाजवादी नेता रहे जार्ज फर्नांडिस व पूर्व सीएम लालू यादव की छत्रछाया में राजनीति की शुरुआत की थी।
राजनीति के शुरुआती दिनों में उन्होंने 1974 से 1977 के बीच में जय प्रकाश नारायण के आंदोलन में हिस्सा लिया और जनता पार्टी में शामिल हो गए। इसके बाद संघर्षों का दौर जारी रहा और अंतत: 1985 में नालंदा की हरनौत विधानसभा सीट से विधायक चुने गए। विधायक बनने के बाद नीतीश कुमार पूरी तरह से बिहार की सियासत में दिलचस्पी लेने लगे थे और सक्रिय भूमिका में आ गए। उनकी सक्रियता को देखते हुए जनता पार्टी ने उन्हें 1989 के लोक सभा चुनाव में बाढ़ लोक सभा क्षेत्र से चुनावी मैदान में उतारा जिसमें उन्हें जीत मिली और वे पहली बार लोक सभा पहुंचे। इसके बाद नीतीश कुमार 1991, 1996, 1998, 1999 और 2004 के लोक सभा चुनाव में लगातार जीतते रहे और केन्द्र की सियासत भी की।
लोक सभा की बात करें तो नीतीश कुमार कुल 6 बार बाढ़ व नालंदा जैसी लोक सभा सीट से संसद भवन पहुंचने में कामयाब रहे हैं जिस दौरान उन्हें जनता पार्टी की सरकार से लेकर अटल विहारी वाजपेयी तक की केन्द्र सरकार में कई महत्वपूर्ण मंत्रालय भी मिले।
मुख्यमंत्री का कार्यकाल
नीतीश कुमार को लोक सभा सदस्य रहते हुए ही पहली बार 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक मुख्यमंत्री बनने का मौका भी मिला। हालाकि बहुमत नहीं साबित होने के कारण एनडीए की सरकार गिर गई और वे फिर एक बार केन्द्र की राजनीति में सक्रिय हो गए।
तमाम राजनीतिक उठा-पटक के बाद उन्होंने अंतत: 24 नवंबर 2005 को बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली जिसके बाद से अब तक अलग-अलग गठबंधन के सहारे बिहार की सत्ता व मुख्यमंत्री के पद पर काबिज हैं। बता दें कि मई 2014 से फरवरी 2015 के बीच छोटे अवधि के लिए उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दिया था और जीतन राम मांझी को बिहार की कमान सौंपी थी।
जानें सीएम नीतीश ने कब-कब बदला पाला?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 1970 के दशक में अपने सियासी पारी की शुरुआत जनता पार्टी के साथ की जिसके बाद विधायक व सांसद बनने के बाद 1994 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व वाली समता पार्टी में चले गए। हालाकि 1996 में समता पार्टी ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया और आगे सियासत साथ करने लगे। इस दौरान नीतीश कुमार केन्द्र की अटल विहारी बाजपेयी सरकार में मंत्री रहे। इसके बाद से वे लगातार 2014 तक एनडीए का हिस्सा रहे और केन्द्र के बाद 2005 से बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवा दी।
लोक सभा चुनाव 2014 में नरेन्द्र मोदी को एनडीए का संयोजक बनाए जाने के बाद उन्होंने पाला बदल कर अपने पुराने सहयोगी लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के साथ गठबंधन कर बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और महागठबंधन की सरकार बनाई। इसके बाद फिर नीतीश कुमार 2017 में एनडीए के साथ आ गए और सरकार बनाई। 2020 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार को झटका लगा और उनकी पार्टी बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी बन गई। इसके बाद फिर एक बार नीतीश कुमार ने अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने गठबंधन सहयोगी को बदल कर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का साथ चुना और बिहार में महागठबंधन की सरकार बनाई। हालाकि आपसी ताल-मेल ठीक ना होने और आरजेडी की महत्वाकांक्षा का हवाला देकर नीतीश कुमार एक बार फिर पलट गए और अंतत: 2024 के शुरुआती महीने जनवरी में उन्होंने अपने पुराने सहयोगी रहे NDA का दामन थाम लिया और लोक सभा चुनाव में साथ लड़ कर गठबंधन ने 30 सीट पर जीत दर्ज की है।
क्यों सुर्खियों में हैं नीतीश कुमार?
नीतीश कुमार अब फिर एक बार सुर्खियों में हैं और किंगमेकर की भूमिका में नजर आ रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि अगर नीतीश कुमार अपने सियासी इतिहास से सबक लेकर फिर पलटी मार गए तो एनडीए का समीकरण बिगड़ सकता है और नरेन्द्र मोदी के रूप में उन्हें सरकार बनाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।