Period Leave: महिलाओं के लिए पीरियड लीव की मांग करने वाली याचिका को लेकर पिछले लंबे समय से सुप्रीम कोर्ट में बहस चल रही है। ऐसे में इस याचिका पर एक बार फिर सुनवाई हुई लेकिन इस बार भी मामला सरकारी नीति से जुड़ा बताकर सरकार को खास निर्देश दिए गए हैं। जी हां यह मामला अदालत में तय नहीं हो सकती क्योंकि अगर वह किसी तरह का फैसला लेते हैं तो इसका असर महिलाओं की जिंदगी पर पड़ेगा। इसलिए कोर्ट ने इसे सरकारी नीति से जुड़ा मामला बताते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से खास निवेदन करते हुए नजर आए। आइए जानते हैं आखिर क्या है पूरा माजरा।
हम नहीं ले सकते फैसला
कोर्ट ने कहा कि अगर हम इस याचिका पर कोई फैसला लेते हैं तो इससे महिलाओं को कोई भी कंपनी काम देने से पहले सोचेंगे जो उनके प्रोफेशन के लिए नुकसानदायक हो सकता है। महिलाओं को उनके रोजगार से अलग कर दिया जाएगा और ऐसा हो यह हम नहीं चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए ये निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मामला वैसे भी राज्यों की नीतियों और सरकार की है तो ऐसे में याचिकाकर्ता महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सेक्रेटरी और एडिशनल सॉलिसिटर के पास जाएं और इस पर चर्चा करें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि हम महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सेक्रेटरी से निवेदन करते हैं कि वह नीतियों को अपने स्तर पर देखकर इस बारे में एक पॉलिसी तैयार करने के बारे में सोचें लेकिन इसके लिए सभी चर्चा होनी चाहिए। अगर केंद्र और राज्य मिलकर इस पर कोई नीति बनाती है तो यह कारगर हो सकता है।
पीरियड लीव की मांग वाली याचिका पर चल रही बहस
गौरतलब है कि पीरियड लीव की मांग वाली याचिका पर पिछले लंबे समय से बातचीत चल रही है और इस पर काफी राजनीति भी जारी है। इस बारे में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था महिलाओं को ऐसी लीव की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने पीरियड को जीवन का नेचुरल हिस्सा बताया था और कहा था कि महिलाओं को इसके लिए कमजोर होने की जरूरत नहीं है।
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