PM Modi: बीते दिन यानि 10 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की काफी चर्चा हो रही है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं भी गुजारा भत्ता पाने के लिए कानून की मदद ले सकती है। कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने साफ कहा कि धर्म से इसका कोई मतलब नहीं है। न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने यह फैसला सुनाया। मालूम हो कि यह भारत में मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए शीर्ष अदालत के कई फैसलों में से एक है। वहीं इस बीच राजीव गांधी का एक फैसला काफी चर्चा में बना हुआ है।
शाहबानो मामला और राजीव गांधी सरकार
दरअसला 1985 में, सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मदाबाद में एक मुस्लिम महिला के गुजारा भत्ते के अधिकार को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया था । यह मामला अहमद खान बनाम शाहबानो बेगम था। हालांकि राजीव गांधी ने (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम 1986 लागू किया। राजीव गांधी ने 1986 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया था। इस अधिनियम को भेदभावपूर्ण माना गया, क्योंकि इसने मुस्लिम महिलाओं को धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत मिलने वाले बुनियादी भरण-पोषण के अधिकार से वंचित कर दिया।
गोलबाई बनाम नसरोजी 1963
मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों से संबंधित पहले मामलों में से एक, 1963 का गूलबाई मामला था, जहां अदालत ने वैध निकाह समझौते के आवश्यक घटकों पर जोर देते हुए मुस्लिम कानून के तहत विवाह की वैधता के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए थे।
तुष्टिकरण से लेकर सशक्तिकरण तक कैसे आया बदलाव
गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा मुस्लिम महिलाओं को लेकर कई अहम फैसल लिए गए। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट द्वारा कल दिए फैसले को भी मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत के तौर पर देखा जा रहा है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि एक तरफ जहां वोट बैंक की राजनीति के चक्कर में राजीव गांधी ने मुस्लिम महिलाओं के अधिकार की बात करने वाली सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ही पलट दिया था। वहीं मोदी राज में मुस्लिम महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए कई अहम कदम उठाएं जा रहे है। जिसमे तीन तलाक कानून से लेकर अब गुजारा भत्ता भी शामिल हो गया है।