CM Bhagwant Mann: पंजाब के अलग-अलग हिस्सों में आज वीर नायक बाबा बंदा सिंह बहादुर की जयंती मनाई जा रही है। आज के दिन लोग बंदा सिंह बहादुर (Baba Banda Singh Bahadur Birth Anniversary) को श्रद्धा-सुमन अर्पित कर उनकी बहादुरी का स्मरण कर रहे हैं।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान (CM Bhagwant Mann) ने भी बंदा सिंह बहादुर की जयंती के अवसर पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने वीर नायक की बहादुरी का स्मरण करते हुए महत्वपूर्ण बात कही है। सीएम मान ने कहा है कि जीवन पर्यंत पीड़ितों की रक्षा करने वाले बंदा सिंह बहादुर की जयंती पर उन्हें नमन है।
वीर नायक बंदा सिंह बहादुर की जयंती पर CM Bhagwant Mann की प्रतिक्रिया
वीर नायक बंदा सिंह बहादुर की जयंती (Baba Banda Singh Bahadur) पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान (CM Bhagwant Mann) की अहम प्रतिक्रिया सामने आई है। सीएम मान नेअपने आधिकारिक एक्स हैंडल से पोस्ट जारी कर अपने विचार रखे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि “बाबा बंदा सिंह बहादुर जी की जयंती के अवसर पर, हम उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाने और पीड़ितों की रक्षा करने वाले पहले सिख जनरल का सम्मान करते हैं। ऐसे वीर नायक सदैव देश के दिलो-दिमाग में बने रहेंगे।”
बाबा बंदा सिंह बहादुर ने मुगलों से लिया था लोहा
बंदा सिंह बहादुर (Baba Banda Singh Bahadur) का जन्म बंदा सिंह बहादुर का जन्म 17 अक्तूबर, 1670 को राजौरी में हुआ था। वे बेहद अल्पायु में ही घर छोड़ कर बैरागी हो गए। इसके बाद से उन्हें माधोदास बैरागी के नाम से जाना जाने लगा। धीरे-धीरे कठिन परिश्रम और लगन की बदौलत वे धार्मिक ग्रंथों के अध्येता हुए। हालाकि उन्होंने खुद को एक बहादुर योद्धा के रूप में तब्दील किया और उनका नाम आज भी इतिहास में अमर है।
बंदा सिंह की बहादुरी का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने वर्ष 1709 में मुगलों से लोहा लिया और बादशाह बहादुर शाह के खिलाफ सिख किसानों को एकजुट किया। इसके बाद उन्होंने सोनीपत और कैथल में मुगलों का खजाना लूटा और पीड़ितों की भरपूर मदद की। बंदा सिंह की लोकप्रियता बढ़ती गई और उनकी सेना भी विशाल होती गई। बीतते समय के साथ उन्होंने अपनी सेना में करीब पाँच हज़ार घोड़े और आठ हजार पैदल सैनिक शामिल किए जिनकी संख्या बढ़कर उन्नीस हजार हो गई।”
बंदा बहादुर ने मई 1710 में सरहिंद पर हमला बोला और सरहिंद शहर को मिट्टी में मिला कर जीत हासिल की। इसके बाद वे यमुना नदी के पूर्व में पहुंचे जहां हिंदुओं को तंग किया जा रहा था। उन्होंने यहां भी जंग लड़कर सहारनपुर शहर को बर्बाद किया और हिंदुओं की रक्षा की। अंतत: वे 9 जून 1716 को वीरगति को प्राप्त कर गए।