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क्या BJP को भारी पडे़गी पूर्व CM वसुंधरा की अनदेखी? जानें क्या है राजस्थान का सियासी समीकरण

Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर दावा किया जा रहा है कि यहां टिकट बटवारे में इस बार वसुंधरा राजे की नहीं चल रही है। हालाकि राजनीतिक टिप्पणीकारों का कहना है कि वसुंधरा की अनदेखी की बात करना जल्दबाजी होगी। पार्टी को अभी 150 से ज्यादा सीटों पर प्रत्याशियो की घोषणा करनी है। ऐसे में हईकमान उन्हें विश्वास में ले लेगा।

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Rajasthan Assembly Election 2023: राजस्थान की रेत के साथ इन दिनों वहां के सियासत में भी गर्माहट देखने को मिल रही है। बता दें कि सूबे में 25 नवंबर को विधानसभा के चुनाव होने हैं और इसको लेकर सत्तारुढ़ दल कांग्रेस के साथ भाजपा की तैयारी भी जोरों पर है। दावा किया जा रहा है कि भाजपा राजस्थान की सत्ता में वापसी के लिए कड़ी मशक्कत कर रही है। इस क्रम में बीते दिनों भाजपा ने अपने प्रत्याशियों की पहली लिस्ट को जारी करते हुए सबको चौंका दिया था। दावा किया गया कि टिकट बंटवारे में सूबे की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की नहीं चली है। ऐसा इसलिए भी कहा गया क्योंकि वसुंधरा के खास रहे दो उम्मीदवारों को पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बनाया। इसमें विद्यानगर विधानसभा से नरपत सिंह राजवी और झोटवाड़ा से राजपाल सिंह शेखावत के नाम शामिल हैं। इन दोनों नेताओं को वसुंधरा का खास माना जाता है।

राजस्थान की सियासी समीकरण

राजस्थान का सियासी समीकरण बेहद दिलचस्प नजर आ रहा है। बता दें कि राज्य में कुल 200 विधानसभा सीटें हैं। ऐसे में सरकार बनाने के लिए राजनीतिक दलों को 101 सीटों के साथ बहुमत में आना पड़ेगा। राजस्थान को लेकर कहा जाता है कि यहां हर पांच वर्ष पर सत्ता परिवर्तन की परंपरा रही है। ऐसे में दावा किया जा रहा है कि इस बार भाजपा इस परंपरा को कायम रखते हुए चुनाव में वापसी कर सत्ता हासिल करेगी। हालाकि ये इतना आसान नहीं नजर आ रहा है क्योंकि पार्टी यहां अंदरुनी कलह से जूझ रही है जिसका असर विधानसभा चुनाव पर पड़ सकता है।

भाजपा ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व में वर्ष 2003 में परंपरा को कायम रखते हुए सरकार में वापसी की थी। इस दौरान वसुंधरा राजे को सूबे का मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके बाद से वर्ष 2008 में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की और सरकार बना लिया। फिर 2013 में बाजी पलट गई और भाजपा ने सत्ता में वापसी की थी और राजे को ही सूबे में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। हालाकि 2018 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेका और गहलोत के नेतृत्व में सरकार बनाई। अब इस क्रम को देखते हुए दावा किया जा रहा है कि एक बार फिर भाजपा सत्ता में वापसी कर सकती है। हालाकि सत्ता की राह इस बार आसान नहीं होने वाली और परिस्थितियां हर बार से अलग नजर आ रही हैं।

वसुंधरी की अनदेखी पड़ सकती है भारी

राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे राज परिवार से आती हैं। राजस्थान में उनकी पैठ अच्छी खासी है। यही वजह है कि तमाम विरोधाभास के बाद भी भाजपा का हाईकमान उनकी अनदेखी नहीं कर सकता है। हालाकि इस चुनाव के लिए जारी हुई भाजपा की पहली लिस्ट में उनके दो प्रखर समर्थकों का टिकट काटकर कई कद्दावर नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा गया है। इसको लेकर कहा जा रहा है कि वसुंधरा की टिकट बटवारे में चली नहीं है। हालाकि ये भी कहा जा रहा है कि अभी पहली लिस्ट जारी हुई है और ज्यादातर सीटों पर प्रत्याशियों का चयन बाकी है। ऐसे में हाईकमान राजे को फिर से विश्वास में लेकर चुनावी मैदान में उतरेगा।

राजस्थान में ताकतवार हैं वसुंधरा राजे

राजस्थान की सियासत पर ध्यान रखने वाले राजनीतिक टिप्पणीकारों की मानें तो अब भी सूबे में यदि कोई सबसे ताकतवर नेता है तो वो राजे ही हैं। लोगों का मानना है कि उनके अंदर आज भी पार्टी को राजस्थान में 100 से ज्यादा सीट पर जीत दिलाने की क्षमता है। हालाकि भाजपा इस वर्ष के विधानसभा चुनावों में किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री पद का चेहरा नहीं घोषित कर रही है। ये उसकी नई चुनावी रणनीति है। ऐसे में वसुंधरा की अनदेखी की बात करना जल्दबाजी होगी। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर भाजपा सूबे में सत्ता वापसी करती है तो अंदरखाने की तमाम उठा-पटक के बाद भी वसुंधरा को ही सूबे की कमान दी जाएगी।

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