Article 370 Hearing: संविधान पीठ में शामिल जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, “यह कहना भी बहुत अजीब है कि राज्य का स्थायी निवासी का दर्जा पाने के लिए आपके पास राज्य में संपत्ति होनी चाहिए।” न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जो संविधान के अनुच्छेद 370 में किए गए बदलावों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई करने वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा हैं, ने इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए एक शर्त के रूप में संपत्ति के मालिक होने की आवश्यकता को “अजीब” बताया। न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, “यह कहना भी बहुत अजीब है कि स्थायी निवासी का दर्जा पाने के लिए आपके पास संपत्ति होनी चाहिए।”
‘आज भी हजारों हिंदू नहीं लौट पाए अपने घर’
उन्होंने यह बात तब कही जब वरिष्ठ अधिवक्ता गुरु कृष्णकुमार ने यह उजागर करने की कोशिश की कि कैसे “हजारों हिंदू और सिख परिवार”, जिन्हें पाकिस्तान के कब्जे वाले जम्मू-कश्मीर से भागना पड़ा था, आज तक अपने पैतृक घरों में वापस नहीं लौट पाए हैं और उन्हें अन्य लाभों से भी वंचित कर दिया गया है।”
‘अनुच्छेद 35ए के कारण हो रहा भेदभाव’
कृष्णकुमार ने कहा कि यह भेदभाव जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 6 और जम्मू-कश्मीर पर लागू भारत के संविधान के अनुच्छेद 35ए के कारण है, जो प्रशासन को ऐसे भारतीय नागरिकों के खिलाफ व्यवस्थित रूप से भेदभाव करने का अधिकार देता है। उन्होंने बताया कि धारा 6 के अनुसार, उनके मुवक्किल, जो परिस्थितियों के कारण बलपूर्वक विस्थापित हुए थे, ने स्थायी निवासी होने का अधिकार खो दिया। भले ही वे 15 अगस्त, 1947 को राज्य के विषय थे।
जो लोग स्थायी की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आते थे उन्होंने कहा कि प्रावधान के अनुसार निवासी को जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन शासक द्वारा जारी 1927 के आदेश में स्थायी निवासी की परिभाषा पर वापस आना होगा।
गुज्जर बकरवाल समुदाय के वकील ने क्या कहा ?
इसके बाद जस्टिस खन्ना ने पूछा कि क्या 1927 के दस्तावेज हासिल करना मुश्किल नहीं होगा ? अन्य दलीलों में, गुज्जर बकरवाल समुदाय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ को बताया कि भारत और जम्मू-कश्मीर के संविधान के प्रासंगिक प्रावधानों की तुलना “स्पष्ट रूप से स्थापित” करती है कि “भारत का संघ” जम्मू-कश्मीर के लिए संप्रभु है।”
अनुच्छेद 370 पर आज सुनवाई का आखिरी दिन
उन्होंने कहा कि जहां तक अनुच्छेद 370 का सवाल है, कानूनी संप्रभुता भारत संघ और जम्मू-कश्मीर के बीच विभाजित है, अंतिम विधायी संप्रभुता का अधिकार केंद्र के पास है। उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर संविधान अनुच्छेद 5 में “भारत संघ की अंतिम विधायी संप्रभुता को भी मान्यता देता है”। उन्होंने कहा, “राज्य पर केंद्र की विधायी संप्रभुता की सबसे महत्वपूर्ण स्वीकृति जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 147 में पाई जाती है।” बता दें कि अनुच्छेद 370 पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आज (5 सितंबर) आखिरी दिन है।
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