JalliKattu: तमिलनाडु और महाराष्ट्र में सांडों को काबू करने वाले पारंपरिक खेल ‘जल्लीकट्टू’ की अनुमति देने वाले तमिलनाडु के कानून को बरकरार रखा है। इस कानून की वैधता पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुनवाई को दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा ” तमिलनाडु का जानवरों के साथ क्रूरता कानून (संशोधन), 2017 जानवरों को होने वाले दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम कर देता है।”
बता दें कि इस कानून को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इस पर पांच जजों की पीठ ने अपना फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि तमिलनाडु का जानवरों के साथ क्रूरता कानून (संशोधन), 2017 जानवरों को होने वाले दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम कर देता है।
क्या है जल्लीकट्टू ?
जल्लीकट्टू एक पारंपरिक खेल है। जिसे एरुथझुवथुल के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सांडों या बैलों को भीड़ के बीच छोड़ दिया जाता है। इस दौरान खिलाड़ी सांड को काबू में करने की कोशिश करते हैं। पोंगल त्योहार के हिस्से के तौर पर इसे किया जाता है। आरोप है कि इसमें सांडों के साथ हिंसा की जाती है, हालांकि आयोजक ऐसी बातों से इंकार करते हैं।
SC ने जल्लीकट्टू पर लगा दिया था बैन
इस खेल पर प्रतिबंध की भूमिका साल 2011 में केंद्र सरकार के एक कानून के बाद बनी, जिसमें बैलों को उन जानवरों की लिस्ट में शामिल किया गया जिनका प्रदर्शन और प्रशिक्षण बैन कर दिया गया। इसके बाद इस खेल पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका डाली गई। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया और इस पर रोक लगा दी। 2015 में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर फैसला वापस लेने की मांग की थी।
उस दौरान तमिलनाडु सरकार ने SC बताया था कि यह केवल मनोरंजन का काम नहीं है, बल्कि इस महान खेल की जड़ें 3500 साल पुरानी धार्मिक परंपरा से जुड़ी हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका ने खारिज कर दिया था। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने केंद्र से एक अध्यादेश लाने की मांग की। 2016 में केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आई जिसमें कुछ शर्तों के साथ जल्लीकट्टू के आयोजन को हरी झंडी मिली।
तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने बनाया था कानून
2017 में तमिलनाडु की ओ पनीरसेल्वम सरकार ने विधानसभा में एक बिल पास किया था। इस बिल को विपक्षी DMK का भी पूरा सपोर्ट मिला था। विधेयक में जल्लीकट्टू के आयोजन को पशु क्रूरता अधिनियम से बाहर रखने का फैसला किया गया था। महाराष्ट्र में भी सांडों के खेल के लिए कानून पास किया गया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में एक बार याचिका दायर कर इसे रोकने की मांग की गई थी। पहले SC ने याचिका को खारिज कर दिया था, लेकिन बाद में पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई के SC तैयार हो गया था।
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