World Tribal Day 2023: भारत की आजादी के 76 साल बाद भी कई ऐसी जातियां हैं जो आज भी काफी ज्यादा पीछे है। ऐसे में इन आदिवासी जातियों में जागरूकता फैलाने और उनके अधिकारों के संरक्षण को प्रेरित करने के उद्देश्य से हर साल 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है। विश्व आदिवासी दिवस के दिन अनुसूचित जनजाति के लोगों को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करके उनको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। 1994 में संयुक्त राष्ट्रीय महासभा द्वारा दिसंबर में इस दिन को मनाए जाने की घोषणा की थी।
विश्व आदिवासी दिवस 2023 की थीम
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन को आदिवासी जनसंख्या के मानव अधिकारों की रक्षा करना के लिए मनाने की घोषणा की थी। हर साल विश्व आदिवासी दिवस को अलग-अलग थीमों पर मनाया जाता है। ऐसे में अगर 2023 में विश्व आदिवासी दिवस के थीम की बात करें तो, इस साल World Tribal Day की थीम- आत्मनिर्णय के लिए परिवर्तन के प्रेरक के रूप में आदिवासी युवा रखी गई है। इस थीम के जरिए संयुक्त राष्ट्रीय आदिवासी युवाओं पर फोकस कर रहा है। युवाओं को उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करके संयुक्त राष्ट्रीय आदिवासी लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा।
भारत में अनुसूचित जनजातियों के लिए चलाई जा रही ये योजनाएं
इसी कड़ी में आपको बता दें कि, भारत में अनुसूचित जनजातियों को सामाजिक और आर्थिक स्तर से ऊपर उठने के लिए सरकार कई तरह की योजनाएं चल रही है। जिनमें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण, समग्र शिक्षा, जल जीवन मिशन/राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन, आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण, दीन दयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम, 10,000 एफपीओ का गठन और संवर्धन, पीएम-किसान, आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना आदि शामिल है।
40 फीसदी आदिवासी भाषाएं लुप्त होने की कगार पर
भारत में सबसे ज्यादा आदिवासी मध्य प्रदेश में रहते हैं। इसके बाद उड़ीसा फिर महाराष्ट्र, राजस्थान, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, आंध्र प्रदेश, वेस्ट बंगाल और कर्नाटक। इन सभी राज्यों में आदिवासियों की संख्या काफी ज्यादा है। इसी के साथ संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में कुल मिलाकर करीब सात हजार आदिवासी भाषाओं को पहचाना गया है लेकिन इनमें से 40 फीसदी लुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इनका उपयोग पढ़ाई, संचार, सरकारी कामकाज और रोजगार के क्षेत्र में हुआ ही नहीं जिसकी वजह से आदिवासी युवा आर्थिक रूप से उन्नत होने के लिए प्रचलित भाषाओं को अपनाते गए।
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