Lucknow News: लखनऊ विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हल्दी पर शोध के दौरान एक नई बीमारी का खुलासा किया है। दरअसल, शोध के दौरान रोगजनक कवक (पैथोजेनिक फंगस) की वजह से पत्तियों पर धब्बा रोग का पहला मामला दर्ज किया गया है। इसे कोलेटोट्रिकन सियामेंस कहा जाता है, जिसके कारण हल्दी का पूरा पौधा नष्ट हो जाता है। यह हल्दी के अन्य बीमारियों का कारण भी बन सकता है।
हल्दी की पैदावार पर मंडरा रहा खतरा
भारत में हल्दी को सुनहरा मसाला कहा जाता है। जिसे न सिर्फ घरों में खाना बनाने में इस्तेमाल किया जाता है बल्कि कई बीमारियों व चोट में दवा के तौर पर भी उपयोग करते हैं। अब इसी हल्दी की पैदावार पर खतरा पैदा हो रहा है। लखनऊ विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के पीएचडी शोधकर्ता रामानंद यादव ने प्रो. अमृतेश चंद्र शुक्ला के निर्देशन शोध कर कोलेटोट्रिकन सियामेंस को खोजा है।
धब्बा रोग के कारण नष्ट हो जाता है पौधा
शोधकर्ताओं का दावा है कि यह एक ऐसा रोगजनक कवक है जिससे हल्दी की पत्तियों पर धब्बा रोग हो जाता है। इस रोग से धीरे-धीरे पत्तियां भूरे रंग के अनियमित धब्बों के साथ पीली हो जाती हैं। हल्दी की पत्तियों प्रकाश संश्लेषण (फोटोसिंथेसिस) की क्रिया बंद हो जाती है। जिसके कारण पौधे अपने लिए भोजन नहीं बना पाता और वह पूरी तरह से नष्ट हो जाता है।
बचाव संबंधित फॉर्मूला पर हो रहा शोध
प्रो. अमृतेश चंद्र शुक्ला ने बताया कि भारत में हल्दी को प्रभावित करने वाले कोलेटोट्रिकम सियामेंस का यह पहला मामला है। जिसके रिसर्च पेपर को ब्रिटिश सोसाइटी फॉर प्लांट पैथोलॉजी जर्नल ने न्यू डिजीज रिपोर्ट्स में प्रकाशित किया है। जर्नल में इसके खतरे के लक्षणों को जाहिर किया है। प्रो. शुक्ला के अनुसार, इससे बचाव संबंधित फॉर्मूला तैयार करने के लिए शोध किया जा रहा है।
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