Holi 2024: होली से 1 दिन पहले होलिका दहन किया जाता है और इसे लेकर कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि इस दिन बुराई पर अच्छाई और असत्य पर सत्य की जीत के लिए होलिका दहन किया जाता है। वहीं इस खास दिन को अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है लेकिन क्या आपको पता है कि होलिका दहन की शुरुआत कहां से हुई थी। नहीं तो आईए जानते हैं आखिर किस जगह पर हुई थी होलिका जलकर भस्म और प्रहलाद की बचाई गई थी जान। वैसे तो अलग-अलग कहानी अलग-अलग जगह को लेकर बताई जाती है लेकिन इसकी शुरुआत बिहार के एक जिले से हुई थी। हालांकि मान्यता है कि होली की शुरुआत बुंदेलखंड के एरच से हुई थी तो इसकी शुरुआत हरदोई से भी बताई जाती है लेकिन बिहार की यह कहानी काफी लोकप्रिय है।
यहां हुई होलिका दहन की शुरुआत
इस बारे में दावा किया जाता है कि बिहार के पूर्णिया जिले में बनमनखी के सिकलीगढ़ धरहरा में होलिका दहन की शुरुआत हुई थी। कहा जाता है कि यहां राख से होली खेली जाती है। यही होलिका अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई थी। दरअसल होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि अग्नि में बैठकर उसका बाल भी बांका नहीं हो सकता और उनके पास एक दिव्य चादर भी थी। जब होलीका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठी तब अचानक आंधी आई और चादर उड़कर प्रहलाद से लिपट गई और होलीका जलकर स्वाहा हो गई
क्यों राख से खेली जाती है होली
होलिका के जलने से वहां वहां बचे राख से वहां के लोगों ने होली पहली बार खेली थी। तभी से होलिका दहन पर गुलाल की जगह यहां राख से होली खेली जाती है। होलिका के जलने पर वहां के लोग काफी खुश हुए थे। यहीं से होलिकादहन की शुरुआत हुई थी और आज भी लोग जश्न मनाते हैं।
प्रहलाद की भक्ति से नाराज थे हिरण्यकश्यप
हिरण्यकश्यप के बेटे प्रहलाद भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे और हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। वह खुद को भगवान कहता था। कई बार मना करने के बावजूद जब प्रह्लाद ने अपनी भक्ति नहीं छोड़ी तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से प्रहलाद को करने के लिए कहा था। आग में होलीका प्रहलाद को लेकर बैठी लेकिन भगवान की माया की वजह से प्रहलाद तो बच गए लेकिन होलीका जलकर भस्म हो गई।
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