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Jagannath Puri Rath Yatra: जग्गनाथ भगवान संग यात्रा पर निकले बलभद्र और सुभद्रा, जानें यहां का सुनहरा इतिहास

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Jagannath Puri Rath Yatra
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Jagannath Puri Rath Yatra: पंचांग के अनुसार भारत के ओडिशा राज्य के पुरी में हर साल भगवान जग्गनाथ की  यात्रा निकाली जाती है। इस यात्रा में शामिल होने के लिए पूरे देश से लाखों लोग यहां पर आते है। यह यात्रा आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि से लेकर दशमी तक मनाई जाती है। यह यात्रा पूरे नौ तक चलती है। इस यात्रा की शुरूआत गुडिचा मंदिर से होती है। जिसमें भगवान जग्गनाथ अपनी भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ पुरी में आए सभी भक्तों को अपने दर्शन देते हैं। भगवान जग्गनाथ के दर्शन करने के लिए भक्तों की काफी भीड़ देखने को मिलती है। इस आर्टिकल में आपको इस यात्रा  की क्या महत्व है और इसे जुड़ें कुछ अनसुने रहस्यों के बारे में जाननें को मिलेगा।

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हर साल यात्रा निकालने की वजह

ओडिशा के पुरी इलाके में इस जग्गनाथ यात्रा को निकालने के पीछे काफी रोचक कहानी है। जिसमें यह बताया गया था बहन सुभद्रा ने अपने भाई श्रीकृष्ण के सामने द्वारका राज्य को देखने की इच्छा प्रकट की थी तो भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी बहन की इस इच्छा को पूरा करने के लिए अपने भाई बलभद्र और बहन के साथ द्वारका राज्य को देखने के लिए रथ में सवार होकर चले गए थे। रथ भगवान जग्गनाथ के द्वारा चलाया जा रहा था और उनके दोनों भाई-बहन पीछे बैठकर इस यात्रा का आनंद ले रहे थे। तब से लेकर आज तक यह यात्रा हर साल निकाली जाती है।

जग्गनाथ मदिंर के कुछ हैरान करने वाले रहस्य

मदिंर के ऊपर वाले हिस्से की नहीं बनती परछाई

इस जग्गनाथ मदिंर की सबसे अलग बात यह है कि इस मदिंर के ऊपर वाले हिस्से जिसे गुबंद  भी कहा जाता है कितनी भी अधिक धूप होने पर उस हिस्से की परछाई नहीं बनती है।

सिंह द्वार में प्रवेश करने पर नहीं आती लहरों की आवाज

भक्तों के मदिंर के अंदर प्रवेश करते ही समुंद्रो की तेज बहती हुई लहरों की आवाज सुनाई देनी बंद हो जाती है। लेकिन जैसे ही बाहर आते हैं , तो आवाज सुनाई देती है।

उल्टी दिशा में बहती है हवा

इस जग्गनाथ मंदिर की एक और हैरान करने वाली बात यह है जो साइंस के नियम को भी फेल कर देती है। तटीय इलाकों में दिन के समय हवा नटी से जमीन की ओर जाती है। लेकिन इस मदिंर में यह प्रक्रिया पूरी तरह से उल्टी चलती है।

मूर्तियों के अधूरे रहने की कहानी

एक कहानी के अनुसार पुरी में एक राजा रहता था जिसका नाम इंद्रद्दुमन था। एक दिन भगवान जग्गनाथ ने उनके सपने में आकर उनकी मूर्तियों को समुंद्र में पड़ी लकड़ियों से बनाने को कहा था तो राजा ने उनकी आज्ञा का पालन करते हुए नदी से सारी लकड़ियां एकत्रित की थी। जिसने इन मूर्तियों का निर्माण किया था उसका नाम विश्वकर्मा था। उन्हें इन मूर्तियों को बनाने के लिए राजा के आगे एक शर्त रखी थी। उन्होंने कहा था कि जब मैं मूर्तियां बना रहा होउंगा , उस दौरान मेरे कमरे में किसी को भी आने की अनुमति नहीं होगी , लेकिन राजा से रूका नहीं गया और वह उनके काम के बीच में कमरे में चले गए थे। तो इस बात पर गुस्सा होकर  विश्वकर्मा जी ने मूर्तियों के काम को बीच में ही छोड़ दिया था। जिसके चलते जग्गनाथ मंदिर में रखी तीनों मूर्तियां आज तक अधूरी है।

रोज लाखों भक्तों को मिलता है प्रसाद

 इस मदिंर की सबसे खास बात यह है कि यहां  रसोई में कुल 500 से अधिक रसोइया और 3000 के करीब सहयोगी है, जो भगवान का भोग बनाने में मदद करते हैं। यहां पर भगवान को चढ़ने वाला प्रसाद को काफी अलग तरीके से बनाया जाता है। इस स्पेशल प्रसाद को बनाने के लिए सारे बर्तनों को एक के ऊपर एक रख कर बनाया जाता  है। इस प्रसाद को महा प्रसाद के नाम से जाना जाता है। यह प्रसाद हर रोज करीब 1 लाख के आस-पास भक्तों को बांटा जाता है। इस प्रसाद की खासियत यह है कि यह कभी भी कम नहीं पड़ता है।  

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