Janeu Rules: हिंदू धर्म में जनेऊ पहनने का काफी महत्व है। जनेऊ उपनयन संस्कार के बाद पहना जाता है और यह जन्म के बाद एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है जिसके बिना पुरुषों की शुद्धि नहीं होती है। पूरी तरह से शुद्ध होने के लिए जनेऊ करना बेहद जरूरी है। आपको यह जानकारी हैरानी होगी लेकिन यह सच है कि इससे काफी फायदे भी हैं लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि जनेऊ के धागे में शादी से पहले और शादी के बाद क्यों फेरबदल किए जाते हैं। जहां पहले तीन धागे का जनेऊ पहना जाता है तो शादी के बाद 6 धागे का। आइए जानते हैं क्यों।
आखिर क्यों होते हैं शादी के बाद 6 धागे
उपनयन संस्कार का हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व है और 16 संस्कारों में से यह एक संस्कार है। इसे पहनने को लेकर काफी नियम बनाए गए हैं। जहां शादी से पहले जनेऊ के तीन धागे लपेटे जाते हैं तो शादी के बाद ये 6 हो जाते हैं। दरअसल शादी से पहले तीन सूत्र के मायने होते हैं वहीं बाद में तीन धागे स्वयं के तो तीन धागे पत्नी के बताए गए हैं। ब्रह्मचारी के लिए तीन धागे वाला जनेऊ होता है।
जनेऊ के मायने और महत्त्व
जनेऊ के तीन सूत्रों की बात करें तो इसमें पहले धागा त्रिमूर्ति यानी ब्रह्मा विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। तो दूसरा धागा देवऋण पितृऋण और ऋषिऋण को दर्शाता है तो वहीं तीसरा सत्व, रज, तम तीनों गुना को दिखाता है।
जनेऊ धारण करने के नियम
- जनेऊ धारण करने वाले लोग मल मूत्र विसर्जन के दौरान दाएं कान पर चढ़ा लें।
- हाथों को अच्छे से साफ करने के बाद ही कान से जनेऊ उतारे ताकि जनेऊ अपवित्र ना हो सके।
- जनेऊ टूट गया हो या गंदा हो गया है उसको उसे बिना देर किए बदल लेना चाहिए।
- निकाल लेने के बाद इसे दोबारा नहीं पहन सकते जब तक कि आप उसे बदल ना लें।
- धारण करने वाले लोगों को कोई भी अपवित्र काम नहीं करना चाहिए।
- जन्म या मरण सूतक लगने के बाद इसे यथाशीघ्र बदल लें।
जनेऊ पहनने के स्वास्थ्य लाभ
- कहा जाता है कि जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने के कारण ब्लड सर्कुलेशन सुचारू रूप से चलता है और ऐसे में हृदय रोग की संभावनाएं कम होती है।
- जनेऊ को धारण करने वाले लोगों में पेट के रोगों के होने की संभावना कम होती है।
- मल-मूत्र विसर्जन में कोई तकलीफ नहीं होती है। इसकी वजह से एसिडिटी और अपच, कब्ज की समस्या नहीं होती है।
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