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Surya Dev: ऐसे करनी चाहिए माघ माह में सप्तमी के दिन पूजा, सूर्य देव जल्दी होंगे प्रसन्न

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Surya Dev
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Surya Dev: हिंदू धर्म में माघ मास के कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं। वहीं, इस माघ में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को ऋषि कश्यप एंव अदिति के पुत्र के रूप में सूर्य का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को सूर्य के जन्म दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। जिसको सूर्य जयंती कहते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सूर्य देव की उपासना वैदिक काल से चली आ रही है। वहीं, हिंदू धर्म के ग्रंथ बाल्मीकि रामायण का आदित्य हृदयम सूर्य की उपासना है। बताया जाता है कि, इस दिन की चर्चा महाभारत में भी है।

Surya Dev की आराधना में आध्यात्मिक मायने

बताया गया है कि, इस सप्तमी के साथ रथ, अचला, माघ आदि का जुड़ना काफी गूढ़ार्थक है। सूर्य के उत्रायण होने पर माघ माह में तप, दान आदि करने की जानकारी तो हमें शास्त्रों से मिलती ही है। इसके अलावा यह भी जानकारी मिलती है कि, इनकी जरूरत स्वयं के आध्यात्मि उन्नति के लिए जरूरी है। इसके साथ ही रथ, अचला में निहित गूढ़ार्थ की जानकारी भी हमें शास्त्र से मिलती है। इस दिन सूर्यदेव अपने रथ को उत्तरी गोलार्ध में उत्तर पूर्व दिशा में मोड़ते हैं। मकर राशि में आने के पश्चात इस समय से सूर्य का संवेग बढ़ने लगता है।

सूर्य के रथ में जुड़े हुए सात घोड़े सात रंगों के प्रतीक हैं, मनुष्य के शरीर में उपस्थित सात संज्ञानात्मक ज्ञान केंद्रों के, सप्त भाषा के, सप्ताह के सात दिनों के, 12 अरे प्रतीक हैं, चक्र के बारह राशियों के, साल के बारह महीने के।

सप्ताह के सातों दिन और साल के बारह माह हमें सूर्य भगवान का आशीर्वाद, आरोग्य एवं समृद्धि के रूप में मिलती रहे। रथ प्रतीक है हमारे मनस का और उससे जुड़े घोड़े बहु शाखा के प्रतीक हैं। बहु शाखा से निकलकर एक शाखा में केंद्रित होने में सूर्य देव सहायक हों।

Surya Dev की आराधना में ये है अनुष्ठान विधि

सूर्य उदय होने से पहले उठकर पूजा की तैयारी शुरू की जाती है। पूरे शरीर में हल्दी और चावल पीछे को लगाकर अकवन। इसके बाद मदार के सात पत्ते को लेकर एक पत्ते को सिर पर, दो पत्तों को दोनों कंधे पर, दो पत्तों को दोनों घुटने पर एव दो पत्तों को दोनों पैर पर रखकर स्नान किया जाता है।

क्या है अकवन?

इस विधि में अकवन भी होता है। इसके बारें में जानते हैं। इसे अर्क भी कहा जाता है। जो सूर्य का भी एक नाम है। कृष्ण यजुर्वेद, अथर्ववेद में इसे अर्क, अर्कमणि कहा गय है। शतपथ ब्राह्मण में अग्नि और प्राण कहा गया है। इसके फूल को आदित्य कहा गया है। तैत्तरीय संहिता में भी इसका वर्णन है। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता, अष्टांग हृदय , कश्यप संहिता आदि से लेकर 21 वीं शताब्दी के ‘डेटाबेस ऑफ मेडिसिनल प्लांट’ में इसकी चर्चा की गई है।

स्वास्थ्य की नजर से इसके महत्व?

वहीं, स्वास्थ्य की नजर से इसके महत्व के बारे में बताते हुए कहा है कि, यह शरीर में वात को संतुलित करने वाला है। पाचन का बढ़ाने वाला है, घावों को जल्दी भरने वाला, कप को नियंत्रित करनेवाला, आंतो के कृमि को नाश करने वाला, एक एंटीऑक्सीडेंट है। यकृत से संबंधित बीमारियों में बचावकरी है। वहीं, ज्योतिष में सूर्य को ह्रदय का कारक कहा गया है। अर्क के पत्ते में कैलाक्टिन पाया जाता है। यह हृदय के कई रोगों से बचाता है।

इस मंत्र को जपते हुए सूरज देव को जल दें

तो अब आगे बताते हैं, स्नान करने के बाद लाल वस्त्र धारण करके, तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल पुष्प डालकर सूर्यमिभुख होकर ऊं घृणि सूर्याय नमरू, ऊं भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्यरू प्रचोदयात, ऊं आदित्याय विदमहेए दिवाकराय धीमहिए तन्नो सूर्यः प्रचोदयत या ऊं भूर्भुवरू स्वरू तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नर प्रचोदयात मंत्र को जपते हुए। सूरज देव को जल दें।

सूर्य की रश्मियों के द्वारा उसके तेज को आत्मसात होते हुए महसूस करें। इसके बाद सूर्याष्टकम का पाठ करें। इस दिन बिना नमक का सात्विक आहार ग्रहण करें। रात में भोजन का त्याग करें। सूर्य देव आपके जीवन के हर ग्रह बाधा को दूर करें, स्वस्थ संतति एवं आरोग्य प्रदान करें। हर प्रकार की सुख समृद्धि दें।

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