Surya Grahan 2023: हिंदू ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक हर साल सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगता है। इस घटना को खगोलीय घटना माना जाता है। हिंदू ज्योतिष शास्त्र की अगर हम बात करें तो सूर्य ग्रहण अशुभ घटना है। इसलिए सूर्य ग्रहण के समय पूजा भी नहीं करना चाहिए। इस इन के बारे में कहा जाता है की सूर्य पीड़ित होता है इसलिए पूजा करना अशुभ होता है। वहीं इस साल सूर्य ग्रहण 20 अप्रैल को लगने जा रहा है। इस दिन वैशाख अवमावस्या भी है। वहीं इस साल का चंद्रग्रहण 5 मई को है। इस दिन वैशाख महीने की पूर्णिमा भी है।
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के बारे में पौराणिक कथाओं में जिक्र है। इसको लेकर समुद्र मंथन की कथा सबसे ज्यादा प्रचलित है। इस कथा को पढ़ने के बाद ही आपको सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगने के कारण के बारे में अच्छे से जानकारी मिल सकती है। आइए आज आपको समुद्र मंथन से जुड़ी कहानी को विस्तार से बताते हैं।
ये है समुद्र मंथन की कथा
समुद्र मंथन के बारे में कहा जाता है कि भगवान और दानव के बीच की लड़ाई है। इस मंथन को दोनों ने मिलकर किया था। इस मंथन के बाद विष निकला था। यह विष पूरे संसार के लिए काल बन गया था। भगवान शिव ने इस विष को पीकर पीने के बाद नीलकंठ अवतार लिया था। इस समुद्र मंथन में कई सारी चीजें भी निकाली थी। इस मंथन से ही धनवंतरित भी प्रकट हुई थी। उनके हाथ में अमृत का कलश था इसको लेकर भगवान और असुरों के बीच खूब लड़ाई हुई थी। राक्षस इस अमृत को पीकर अमर होना चाहते थे । ऐसे में भगवान और असुरों के बीच चल रहे इस झगड़े को शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था।
भगवान विष्णु को मिली थी बटवारे की जिम्मेदारी
भगवान विष्णु को इस अमृत के बंटवारे की जिम्मेदारी मिली थी। भगवान विष्णु ने भी बारी – बारी से सभी को इसका रस पान करवाया। भगवान और राक्षसों की अलग – अलग लाइन लगवाकर उन्हे बैठाया गया। वहीं भगवान विष्णु ने देवताओं को रस पान करवाना शुरू किया। इस दौरान राक्षस को लगा की कही देवता हमसे छल न करे इसलिए एक राक्षस भी देवता के रूप में भगवान वाली पंक्ति में आकर खड़ा हो गया। वहीं भगवान सूर्य और चंद्र ने देवता की लाइन में खड़े इस राक्षस के बारे में जान लिया। दोनों ही देवताओं ने मिलकर इसकी जानकारी भगवान विष्णु को दी।
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इस तरह से हुआ था राहु केतु का जन्म
भगवान विष्णु को जैसे ही इस बात की जानकारी लगी वह गुस्से से लाल हो गए। उन्होंने अपने चक्र से उस राक्षस का सिर भी धड़ से अलग कर दिया। लेकिन मायावी राक्षस ने अमृत की गिरी कुछ बूंदों को चख लिया इसकी वजह से उसकी मृत्यु तो नहीं हुई लेकिन उसके धड़ से जान नही गई। आज भी उस राक्षस के धड़ को लोग राहु केतु के नाम से जानते हैं।
इसलिए होता है ग्रहण
सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की अगर हम बात करें तो इस दिन राहू और केतु ग्रास करने के लिए आते हैं। धार्मिक चीजों के जानकर लोग बताते हैं की इनकी वजह से ही सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगता है।
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डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। DNP News Network/Website/Writer इसकी पुष्टि नहीं करता है। इसे केवल सामान्य अभिरूचि में ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है। किसी भी प्रकार का उपाय करने से पहले ज्योतिष से परामर्श जरूर लें।