Valmiki Jayanti 2024: महाकाव्य व पवित्र ग्रंथ के रूप में देश-दुनिया में अपनी छाप छोड़ चुके रामायण (Ramayana) का जिक्र होते ही महर्षि वाल्मीकि का नाम सामने आता है। महर्षि वाल्मिकी ने ही इस महाकाव्य की रचना की थी। महर्षि (Maharshi Valmiki) का नाम भारत के साथ दुनिया के विभिन्न हिस्सों में आध्यात्मिकता और दर्शन के क्षेत्र में बड़ा नाम है। आज महर्षि वाल्मिकी जी की जयंती मनाई जा रही है। वाल्मिकी जयंती (Valmiki Jayanti 2024) के इस खास अवसर पर हम आपको बताएंगे कि महर्षि का आध्यात्मिकता (Spirituality) और दर्शन (Philosophy) पर प्रभाव आज भी इतना अहम क्यों है?
Valmiki Jayanti 2024- महर्षि वाल्मिकी का आध्यात्मिकता और दर्शन पर प्रभाव
महर्षि वाल्मिकी (Maharshi Valmiki) ने आज से सदियों पहले महााव्य रामायण की रचना की थी। उनकी रचना का प्रभाव भारत के साथ दुनिया के विभिन्न देशों में आध्यात्मिकता पर आज भी है। पवित्र ग्रंथ रामायण (Ramayana) का कहना है कि “व्यापक विश्व रूप भगवाना, तेहिं धरि देह चरित कृत नाना अर्थात वो परमशक्ति जब सीमित दायरे के अंदर संसार में आता है तो बताना चाहता है कि ईश्वर के घर तक कैसे पहुँच सकते है?” रामायण शब्द राम व आयाण से मिलकर बना है जिस का अर्थ है राम का घर। इस पवित्र ग्रंथ के माध्यम से आज भी लोग आध्यात्मिकता के दुनिया में गोता लगाते हैं और प्रभु राम की अराधना में लीन होते हैं।
रामायण में प्रभु के दर्शन को बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदर काण्ड, लंका काण्ड और उत्तर काण्ड जैसे हिस्सों में बांटा गया है। इसमें जीवन का निचोड़ है जिसमें डूबकी लगाकर मनुष्य भवसागर का पार कर जाता है। महर्षि वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण के माध्यम से ही मनुष्य आध्यात्मिक यात्रा का संदेश लिएअपने जीनव को धन्य कर जाता है।
महर्षि वाल्मिकी (Valmiki Jayanti 2024) का प्रभाव दर्शन के क्षेत्र में भी है और वे आज भी दर्शन क्षेत्र के चर्चित नाम हैं। दर्शन का अर्थ है ज्ञान का प्रेम अर्थात जिसे ज्ञान व तमाम जानकारियों में रूचि हो। ऐसे में महर्षि वाल्मिकी जैसे महाज्ञानी का प्रभाव दर्शन के क्षेत्र में आज भी कायम है और लोग उनकी रचना का अध्ययन कर मन को शांत करते हैं और तमाम समस्याओं व उलझनों से छूटकारा पाते हैं।
Valmiki Jayanti 2024- डाकू से महर्षि बनने का सफर
महर्षि वाल्मिकी (Maharshi Valmiki) का अध्यातमिक सफर बेहद रोचक है। यदि कोई कहे कि वे महर्षि बनने से पहले डाकू थे तो इस पर यकीन करना थोड़ा संदेह भरा होता है। हालाकि यही सत्य है। धार्मिक ग्रंथों में दर्ज जानकारी के मुताबिक महर्षि वाल्मिकी का नाम रत्ननाकर हुआ करता था। वे अत्यंत गरीब परिवार से आते थे और अपने परिजनों का पालन-पोषण करने के लिए वल में आने वाले लोगों को लूटते थे। बीतते दिन के साथ रत्नाकर (Ratnakar) की मुलाकात नारद मुनि से हो गई।
रत्नाकर ने नारद भगवान को बंदी बना लिया। इसके बाद नारद प्रभु ने उनसे सवाल किया कि ये जो पाप तुम कर रहे हो क्या इसमें तुम्हारा परिवार सहभागी बनेगा। इस प्रश्न का जवाब जानने रत्नाकर अपने परिजनों के पास पहुंचे। उनके परिजनों ने मस्तक हिलाया और ‘ना’ के रूप में जवाब दिया। इस जवाब को सुन रत्नाकर की आंखें खुल गईं और उन्होंने नारद मुनि से माफी मांगी व अध्यात्म की दुनिया में कदम रखा। यहीं से रत्नाकर का आध्यात्मिक सफर शुरू हुआ और वे कठिन तप के बल पर महाज्ञानी हुए और महर्षि वाल्मिकी के रूप में जाने गए।