Valmiki Jayanti: श्री राम और माता सीता के जीवन पर आधारित रामचरित्रमानस को रचने का श्रेय महर्षि वाल्मिकी को जाता है. वहीं हर साल अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है इसी दिन इनका जन्म हुआ था. इसे वाल्मिकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है, उन्होने कठिन तपस्पा और ध्यान की शक्ती से कई तरह की सिद्धियां प्राप्त की थी. अपना पूरा जीवन उन्होंने भगवान राम जी की पूजा में बिताया आज उनके जीवन से जुड़े बड़े रहस्यों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में केवल कुछ ही लोगों को पता होता है.
जान लीजिए कुछ खास बातें
संस्कृत के प्रखांड पंडित और ज्ञानी महर्षि वाल्मिकी को ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है, जिन्होनें संस्कृत भाषा में कई तरह का काव्य और गद्धय की रचना की. संस्कृत भाषा में सबसे पहली रचना भी उन्हीं की मानी जाती है.
जन्म के बाद उन्हें भील कबीले के लोग चुरा कर ले गए थे जिन्होंने उनका नाम रत्नाकर रखा था. रामायण के एक अध्याय में वाल्मिकी जी नें स्वयं को माता प्रचेता के पुत्र के रूप में सम्बोधित किया है.
महर्षि वाल्मिकी को श्री राम के बारे में नारद मुनी से सबसे पहले पता लगा था जिसके बाद उन्होने अपना पूरा जीवन बिता दिया. प्रचलित कथाओं के अनुसार वाल्मिकी जी ने कड़ी तपस्या की थी जिसके बाद दीमकों ने उनके शरीर के अंदर घर बना लिया जिसके बाद उनका नाम वाल्मिकी पड़ा.
इन जगहों पर आता है नाम
वनवास के दौरान राम और लक्ष्मण की महर्षि वाल्मिकी जी से मुलाकात हुई थी और उसी घटना के बाद उन्होनें रामायण को क्रमबद्ध रूप से लिखना शुरू कर दिया. यह काम लंबे समय तक चला.
उत्तर रामायण के अनुसार भगवान राम ने धोबी की सुनवाई करते हुए अपनी पत्नी माता सीता का त्याग कर दिया था. तब वो भटकती हुई महर्षि वाल्मिकी के आश्रम पहुंची थी.
माता सीता ने जीवन के कई साल वाल्मिकी आश्रम में ही बिताए, घर छोड़ने के समय सीता गर्भवती थी इसलिए वहीं उन्होने लव और कुश नामक दो सुंदर बालको को जन्म भी दिया और पालन पोषण भी किया.
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