Vishnu Vrat Katha & Aarti Lyrics: हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार गुरूवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यताओं के अनुसार गुरूवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से भक्तों की मन की कामनाएं पूरी होती है। ऐसे में आइए हम आपको गुरूवार को होने वाली व्रत कथा और आरती के बारे में बताते है। जिससे आपकी अच्छे से पूजा प्रक्रिया पूर्ण हो सके।
Vishnu Vrat Katha
प्राचीन काल की बात है कि एक राजा भारतवर्ष में राज्य करता था। वह शक्तिशाली और दानी भाव का था। वह प्रतिदिन मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन करने के लिए जाता था। लेकिन उसकी रानी न ही पूजा करती और न ही दान करने की इच्छा रखती। एक दिन राजा शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थी। उसी समय बृहस्पतिदेव साधु भेष में राजा के महल में भिक्षा के लिए गए तो रानी ने भिक्षा देने से मना कर दिया। बल्कि साधु महाराज से यह कहा कि हे साधु महाराज मैं तो दान पुण्य से तंग आ गई हूं. अब आप ऐसा कृपा करें कि सारा धन नष्ट हो जाएं जिससे मैं आराम कर सकूं।
साधु ने कहा- देवी पूरा संसार धन और संतान की तो कामना करता हैं। साधु महाराज ने उन्हें समझाने का खूब प्रयास किया लेकिन रानी पर इन बातों का कोई प्रभाव न पड़ा। फिर रानी को साधु महाराज ने धन नष्ट करने के लिए कई उपाय बताएं। जिससे कुछ दिनों में ही धन घटने लगा। इससे राजा बहुत ही परेशान होने लगा। जब सारा वाक्या रानी ने राजा को बताया तो वह बहुत नाराज हुआ। जब रानी को अपनी गलती का एहसास हुआा तो रानी ने बृहस्पति देव से माफी मांगी और सबकुछ पहले जैसा करने के लिए रानी ने दान, पुण्य, पूजा और व्रत करना शुरू कर दिया।
Vishnu Aarti Lyrics
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥ ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का। स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी। तुम बिन और न दूजा, आस करूँ मैं किसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे। तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी। पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे। तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता। मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे। तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति। किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥ ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे। स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
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