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Eid ul Adha 2024: कमाल आर खान ने कहा ‘रक्तहीन ईद मनाएंगे’! जानिए क्या है इस खास दिन पर ‘कुर्बानी’ का महत्व

Eid ul Adha 2024: ईद-उल-अजहा को लेकर केआरके यानि कमाल राशिद खान ने कहा कि वह रक्तहीन त्यौहार मनाएंगे जिसके बाद बवाल मचा हुआ है। ऐसे में आइए जानते हैं आखिर क्या है कुर्बानी के सही मायने।

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Eid ul Adha 2024
Eid ul Adha 2024

Eid ul Adha 2024: खुद को ट्रेंड एनालिस्ट और क्रिटिक किंग कहने वाले कमाल राशिद खान सोशल मीडिया पर काफी चर्चा में रहते हैं। यह बात सच है कि वह किसी भी मुद्दे पर अपनी बात बेबाकी से रखने में पीछे नहीं रहते हैं और इस सब के बीच देश पर में हर साल की तरह बकरीद का त्यौहार मनाया जा रहा है।लेकिन ऐसे में कमाल राशिद खान चर्चा में है और वजह है उनका एक पोस्ट जिसमें उन्होंने इस बात का ऐलान कर दिया कि वह रक्तहीन ईद मनाएंगे। जबकि ईद-उल-अजहा के मौके पर इस्लाम धर्म में नमाज पढ़ने के साथ-साथ जानवर की कुर्बानी दी जाती है जिसके पीछे एक खास मकसद है। ऐसे में केआरके ट्रेंड में आ गए। आइए जानते हैं आखिर उन्होंने क्या कहा और क्या है कुर्बानी के सही मायने इस्लाम धर्म में।

आखिर केआरके ने क्या कहा

कमाल राशिद खान ने एक्स प्लेटफार्म से अपनी एक पोस्ट में कहा कि “मैं किसी जानवर की कुर्बानी देकर ईद-उल-अजहा नहीं मनाऊंगा। मैं इस दिन को खून खराबी के बिना मनाऊंगा।” इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर तूफान मचा दिया है और लोग उन्हें ट्रोल कर रहे हैं। कमाल राशिद खान का यह बयान वाकई लोगों को चौंकाने के लिए काफी है क्योंकि इस दिन कुर्बानी का खास मतलब होता है। ऐसे में उन्होंने यह कहा है कि आइए रक्तहीन ईद-उल-अजहा मनाएं।

कुर्बानी का महत्व

ईद-उल-अजहा आज यानी 17 जून को धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस्लाम धर्म में कुर्बानी का मतलब लोग अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी देते हैं। ऐसे में उनके लिए इस दिन के खास मायने होते हैं। बकरे या किसी जानवर की बलि देते हैं और उसका हिस्सा बांट दिया जाता है। जहां एक हिस्सा गरीबों को दिया जाता है तो दूसरा हिस्सा दोस्तों और रिश्तेदारों में बांटा जाता है और एक हिस्सा अपने लिए रखा जाता है।

क्या है कुर्बानी के पीछे की कहानी

अगर इस बारे में पूरी बात करें तो कुरान के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेने के लिए उन्हें हुक्म दिया कि वह ऐसी चीज की कुर्बानी दे जो उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय है। ऐसे में हजरत ने अपने बेटे की कुर्बानी दे दी थी और उन्होंने अपने बेटे के गले को रेत डाला था। उनका बेटा उनके लिए मायने रखता था क्योंकि 80 साल की उम्र में उनके बेटे का जन्म हुआ था लेकिन उन्होंने अल्लाह की मर्जी को समझते हुए बेटे की कुर्बानी दी। लेकिन कुर्बानी देने के बाद जब हजरत को होश आया तो देखा उनका बेटा उनके पास जिंदा खड़ा है लेकिन वहां एक जानवर कटा हुआ है। तभी से यह प्रथा शुरू हो गई और अल्लाह को खुश करने के लिए कुर्बानी दी जाती है।

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