Swatantrya Veer Savarkar Review: यह बात सच है कि कुछ लोगों को इतिहास में दिलचस्पी होती है और अगर ऐसा है तो आपको ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर‘ फिल्म जरूर देखनी चाहिए। रणदीप हुड्डा और अंकिता लोखंडे स्टारर यह फिल्म 22 मार्च शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। अगर आप इस फिल्म को देखने की प्लानिंग कर रहे हैं तो आइए जानते हैं आखिर कैसी है यह फिल्म और फिल्म को किस तरह मिल रही है रिएक्शन। क्या है इसमें खासियत और क्या है इसकी कहानी जो रही इतनी चर्चा में। वीर सावरकर की यह फिल्म 3 घंटे की है तो इसे कुछ लोग काफी बोरिंग बता रहे हैं तो कुछ को सावरकर की जिंदगी की अनसुनी कहानी काफी पसंद आई है।
एक्टिंग के दीवाने हुए लोग
अगर फिल्म में एक्टिंग की बात करें तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि रणदीप कमाल कर गए हैं। निर्देशन के क्षेत्र में भी उन्होंने इस फिल्म से अपना अलग जादू चलाया। एक्टर और निर्देशक के तौर पर हुड्डा का कमाल देखने को मिला है। पूरी फिल्म घूमती है वीर सावरकर के किरदार में और इसके लिए उनसे बेहतर एक्टर कोई नहीं हो सकता। वहीं बात करें अंकिता लोखंडे की तो फिल्म में उन्हें कम स्क्रीन मिला है लेकिन वह अपने रोल के साथ फिट बैठती हैं। उनकी रणदीप के साथ केमिस्ट्री लोगों को काफी पसंद आ रही है।
किरदार के साथ एक्टर्स की न्याय
फिल्म में अगर रणदीप के किरदार की बात करें तो उन्होंने वीर सावरकर के किरदार के लिए अपनी जान झोक दी है। वहीं यमुनाबाई के किरदार में अंकिता लोखंडे का कोई जवाब नहीं है। स्क्रीन पर जब आप अंकिता और रणदीप को देखेंगे तो उनकी केमिस्ट्री के फैन हो जाएंगे। वहीं अमित सियाल भी फिल्म में रणदीप के भाई के किरदार में काफी पसंद किए गए हैं। कुछ लोगों को फिल्म में महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के किरदार अटपटे लगे क्योंकि जिन्हें इतिहास याद नहीं है उनके लिए यह कन्ज्यूरिंग है।
क्या है फिल्म की कहानी
एक्टिंग और निर्देशन के क्षेत्र में रणदीप का कोई जवाब नहीं है। वह अपनी हर फिल्म से जान डाल देते हैं और एक बार फिर उन्होंने ऐसा ही किया है। फिल्म की कहानी शुरू होती है प्लैग बीमारी से जहां सावरकर के पिता इस गंभीर बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं। वही अंग्रेज शासन उनके पिता और इस बीमारी से पीड़ित लोगों को जिंदा जला देती है। उसके बाद सावरकर बैरिस्टर की पढ़ाई करने के लिए विदेश चले जाते हैं और फिर वह महात्मा गांधी की सोच से पड़े कुछ ऐसा करते हैं जो इतिहास बन जाती है। वीर सावरकर महात्मा गांधी को पसंद तो करते थे लेकिन सावरकर के क्योंकि मुताबिक देश के लिए अहिंसा ही नहीं जब हिंसा की जरूरत हो तो वह भी करने से वह बाज नहीं आएंगे।
कुछ सीन देखने के बाद खड़े हो जाएंगे रोंगटे
फिल्म की कहानी आपको काफी मजेदार लगेगी लेकिन लंबाई 3 घंटे होने की वजह से कभी-कभी आप बोरिंग भी महसूस कर सकते हैं। अगर कमी की बात करें तो फिल्म को काफी डार्क शेड में शूट किया गया है जो इतिहास में कम समझ रखने वाले लोगों के लिए काफी कन्ज्यूरिंग हो सकती है। वहीं जब सावरकर को कालापानी की सजा होती है उस सीन को देखने के बाद आपके रोंगटे खड़े हो सकते हैं। कुछ सीन ऐसे हैं जिन्हें देख आप खौफ में आ जाएंगे। और भी चीज जानने के लिए आप इस फिल्म को सिनेमाघरों में एंजॉय कर सकते हैं।
दर्शकों के रिव्यु
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