CEC Appointment Bill: संसद ने गुरुवार को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों का चयन करने वाले एक विधेयक को पारित किया। इसे पेश करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने संसद में कहा कि इसे एक फैसले के बाद लाया गया है। मालूम हो कि बीते 12 दिसंबर को मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्त (नियुक्ति, सेवा शर्तें एवं पदावधि) विधेयक 2023 को ध्वनि मत से मंजूरी दे दी गई थी।
सरकार की ओर से इसे पेश करते हुए चर्चा का जवाब दिया गया था। कानून मंत्री की मानें तो अगस्त 2023 में यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया था और मूल कानून में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य आयुक्तों की नियुक्ति का प्रावधान नहीं था। बहरहाल, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 एक संक्षिप्त बहस के बाद लोकसभा द्वारा पारित किया गया।
लोकसभा में 97 सांसदों की अनुपस्थिति के बीच महत्त्वपूर्ण विधेयक पारित
हालांकि, इस दौरान लोकसभा में विपक्ष के 97 सांसद अनुपस्थित रहे। मालूम हो कि विपक्षी पार्टियां लगातार इस विधेयक का विरोध कर रहा था और इसके जरिए Election Commission पर सरकार के कब्जा करने के आरोप लगा रहा था। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी पार्टियों का कहना है कि इस विधेयक के प्रभाव में आने के बाद से चुनाव आयोग सरकार की कठपुतली बन जाएगा। वहीं सरकार का तर्क है कि नए कानून को लाना जरूरी था क्योंकि पुराने कानून में कुछ कमजोरियां थीं।
आलम यह है कि सत्ता पक्ष और विपक्ष के पास इस विधेयक को लेकर अपने-अपने तर्क मौजूद हैं। विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब दते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने विपक्ष के इन आरोपों का खंडन किया कि यह विधेयक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों से संबंधित उच्चतम न्यायालय के एक फैसले को दरकिनार करने के लिए लाया गया है।
केंद्रीय कानून मंत्री का जवाब
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने कहा कि, ”यह विधेयक जो हम लाए हैं वह उच्चतम न्यायालय के खिलाफ नहीं है। इसे उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार लाया गया है। यह अनुच्छेद 324(2) के तहत सूचीबद्ध प्रावधानों के अनुसार है। यह संविधान के अनुच्छेद 50 के तहत सूचीबद्ध शक्तियों के पृथक्करण का भी अनुसरण करता है।” मालूम हो कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मार्च महीने में एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए कहा था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और चीफ जस्टिस की सदस्यता वाली एक समिति की सलाह पर राष्ट्रपति करेंगे। कोर्ट ने कहा था कि यह मानदंड तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कि इस मुद्दे पर संसद में कोई कानून नहीं बन जाता।
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