Same Sex Marriage: देश की सबसे बड़ी न्यायपालिका यानी की सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह (सेम सेक्स) पर 17 अक्टूबर को अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से LGBTQ समुदाय को काफी बड़ा झटका लगा है।
‘उन्हीं को वोट देंगे जो हक की लड़ाई लड़ेंगे’
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक समुदाय के अधिकारों को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया। इस फैसले में भले ही समलैंगिक समुदाय की जीत नहीं हुई हो। लेकिन समलैंगिक समुदाय मानता है कि उनके जोड़े को भारत में एक बेहतर जगह मिल गई है। सामाजिक सोच बदली है पर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता संसद से ही मिल सकती है। न्यायपालिका से नहीं, ऐसे में अब आगे की लड़ाई सियासी मोड ले सकती है। LGBTQ समुदाय तरफ से कहा जा रहा है कि अब उनकी 17 फ़ीसदी जनसंख्या उन्हीं को वोट देगी जो उनके हक की लड़ाई लड़ेंगे।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो समलैंगिक समुदाय की तरफ से कहा गया है कि वह उन्हीं को अपना वोट देंगे जो उनकी लड़ाई लड़ेगा। 11 सालों से लिविंग रिश्ते में रह रहे एक समलैंगिक जोड़े ने कहा कि इश्क़ के हक़ की लड़ाई के कई पड़ाव पार किए पर विवाह को क़ानूनी मान्यता ना मिलना इनके लिए झटका तो है, पर उम्मीदें बंधी हैं। समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता मिलने की लड़ाई में याचिकाकर्ता हरीश अय्यर ने कहा कि न शादी की इजाजत, न बच्चा गोद लेने का हक। अब वोट उसी को देंगे जो उनके हक़ के लिए लड़े. हरीश की माँ भी साथ खड़ी रहीं।
“सरकार से गुज़रने वाला ये रास्ता जटिलताओं से भरा होगा”
इसके साथ ही अपने समलैंगिक बच्चों के हाथ के लिए लड़ाई लड़ रही एक महिला ने मीडिया में कहा कि कोर्ट ने रास्ता तो दिखाया है, पर सरकार से गुज़रने वाला ये रास्ता जटिलताओं से भरा होगा।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को समिति बनाने का निर्देश दिया है जो समलैंगिक जोड़ों को परिवार के रूप में शामिल करने संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन पेंशन आदि पर काम करेगी। समुदाय की सबसे पहली मांग है, कि समिति में उनके समुदाय से प्रतिनिधि होना चाहिए। जो इनकी आवाज को सही से उठा सके।
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