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Same Sex Marriage: Supreme Court ने केंद्र से पूछा- ‘समलैंगिक कपल की शादी को कानूनी मान्यता दिए बिना क्या अधिकार दे सकते हैं’

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Same Sex Marriage Case: समलैंगिक विवाह केस को कानूनी मान्यता के लिए हो रही सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में आज 6 वाँ दिन है। आज की बहस के बाद सुप्रीम कोर्ट को मानना पड़ा कि यह एक ऐसा गंभीर और संवेदनशील विषय है। जो पूरे समाज पर असर डालने वाला है। यह विषय संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है, इस पर संसद में चर्चा होना बेहद जरूरी है। कोर्ट केंद्र सरकार की दलील से सहमत दिखी कि शादी को मान्यता देने से कई दूसरे कानूनों में भारी असंतुलन पैदा हो जाएगा।

सामाजिक सुरक्षा का सवाल खड़ा हुआ

सीजेआई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुनवाई कर रही 5 जजों की बेंच ने सरकार से पूछा कि क्या कोई सामाजिक सुरक्षा कानून बनाना चाहती है। बता दें सुप्रीम कोर्ट इन संबंध को आपराधिक दायरे से बाहर कर चुकी है। ऐसे में समलैंगिक लोगों की मांग है कोई कानून न होने के कारण वह जिस पार्टनर के साथ जीवन बिता रहे हैं। उसको बैंक अकाउंट में नामित नहीं कर सकते। उसको बीमित नहीं कर सकते। वसीहत नहीं कर सकते।

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सरकार बोली- मूल संविधानिक व्यवस्था में भारी असंतुलन हो जाएगा।

केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस सुनवाई पर कड़ा एतराज जताया। उन्होंने कहा कि यह पूरे समाज को प्रभावित करने वाला गंभीर और संवेदनशील विषय है। कोर्ट अपनी तरफ से कोई वैवाहिक संस्था नहीं बना सकता। इस पर अलग अलग राज्यों की संस्कृति, सामाजिक परिवेश होने के कारण उनकी राय लेना बेहद आवश्यक है। ये पूरे देश को प्रभावित करेगा। यदि इसे वैवाहिक मान्यता दी गई तो संविधान में कई गई व्यवस्था के 160 कानूनों को असंतुलित कर देगा।
उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि माता-पिता की संतानों को रक्तसंबंध माना जाता है। जबकि माता या पिता में कोई एक साझा हो तो बच्चों का संबंध हाफ ब्लड कहा जाता है। इसके बाद यदि 2 लेस्बियन महिलाओं में से कोई एक क्रत्रिम गर्भधारण कर बच्चे को जन्म देती है। तब इस स्थिति में बच्चे के कानूनी अधिकार परिभाषित करने में समस्या खड़ी हो जाएगी।

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