Sharad Yadav Death: जद (यू) के पूर्व अध्यक्ष तथा एनडीए सरकार में पूर्व केंद्रीय मंत्री रहे शरद यादव का 12 जनवरी रात गुरुग्राम के फोर्टिस चिकित्सालय में निधन हो गया । उनके निधन पर देश के प्रधानमंत्री तथा नेता विपक्ष और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे सहित उनके सबसे अधिक समय तक निकट रहे बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार द्वारा व्यक्तिगत गहरी शोक संवेदना व्यक्त की गई। इसके साथ साथ अन्य प्रमुख राजनीतिज्ञों द्वारा भी शोक संदेश, संवेदना व्यक्त करने का क्रम निरंतर चल रहा है।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर जताया गहरा दुःख
वरिष्ठ समाजवादी लोहियावादी राजनीतिज्ञ शरद यादव के निधन पर देश के पीएम मोदी ने गहरा दुःख जताते हुए एक ट्वीट के माध्यम से अपना शोक संदेश भेजा। अपने ट्वीट मे उन्होंने लिखा “‘‘शरद यादव के निधन से दुखी हूं। इतने लंबे वर्षों के अपने सार्वजनिक जीवन में उन्होंने स्वंय को सांसद और मंत्री के रूप में प्रतिष्ठित किया। वे डॉ. लोहिया के आदर्शों से बहुत प्रेरित थे। मैं हमेशा अपनी बातचीत को संजोकर रखूंगा। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं। ॐ शांति ”
बिहार के सीएम नितीश कुमार ने भी ट्वीट कर शोक संदेश व्यक्त किया
बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के बारे में यदि कहा जाए तो वह कदापि दिवंगत शरद यादव के सबसे निकट रहे हैं। आपातकाल में लोहिया के साथ से लेकर बिहार की राजनीती में लालू प्रसाद यादव का विकल्प बने तो तो उसका सबसे बड़ा श्रेय शरद यादव को ही जाएगा। भले ही राजनीति की टेढ़ी मेढ़ी चालों ने शरद यादव को 2017 तक लाकर नितीश कुमार से दूर खड़ा कर दिया। इसी से मर्माहत नितीश ने अपने ट्वीट में लिखा “पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव जी का निधन दुःखद। शरद यादव जी से मेरा बहुत गहरा संबंध था। मैं उनके निधन की खबर से स्तब्ध एवं मर्माहत हूं। वे एक प्रखर समाजवादी नेता थे। उनके निधन से सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें। ”
जानें कैसे रहे शरद के भाजपा से संबंध
कई राजनीतिक पंडितों का मानना है कि वर्ष 1990 का समय ही वो निर्णायक था जब शरद पवार को किसी एक पक्ष को चुनना था और उस निर्णय में भाजपा की ओर मुड़ना आरंभ हो गए। वास्तव में बिहार की राजनीति के स्तंभ रहे लालू,नितीश, शरद तथा पासवान जब आपातकाल में कांग्रेस के विरुद्ध एकजुट थे किन्तु 1990 आते आते लालू धुर विरोधी कांग्रस के पक्ष में साथ खड़े हो गए। इसी कारण शरद यादव को राजनितिक विवशता ने भाजपा के साथ ला दिया जबकि नितीश तो भाजपा से अलग रहना चाहते थे। एनडीए में शरद यादव के जेडीयू का अध्यक्ष रहते उनका भाजपा के साथ रिश्ता गहरा हो चुका था। वो एनडीए से अलग नहीं होना चाहते थे किन्तु नितीश की हठ और दबाब के आगे शरद हार गए। जिस कारण शरद और भाजपा अंतिम समय तक आपस में दूर हो गए।
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