Supreme Court: दुष्कर्म के एक मामले में कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले की भाषा पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आलोचना की है। हाईकोर्ट के उस टिप्पणी को गंभीरता से लिया है, जिसमें युवा लड़कियों को यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखने की बात कही गई थी।
मालूम हो कि इस मामले में हाईकोर्ट ने लड़कियों से आग्रह करते हुए कहा था कि वे अपनी सेक्सुअल इच्छाओं पर नियंत्रण रखें, क्योंकि समाज की नजरों में जब लड़कियां सिर्फ दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाती है तो वह पराजित हो जाती हैं। बहरहाल, अब इस पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए हाईकोर्ट के इस तरह की भाषा के इस्तेमाल को आपत्तिजनक और अनुचित बताया है। SC ने इसे पूरी तरह से संविधान की धारा 21 के तहत किशोरों के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया है।
राज्य सरकार और अन्य को जारी हुआ नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल राज्य सरकार और अन्य को इस मामले में नोटिस भी जारी किया है। नोटिस का जवाब 4 जनवरी तक देना है। इस मामले में जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस पंकज मित्थल की पीठ ने टिप्पणी कर कहा कि, ऐसे मामलों में न्यायाधीशों को अपनी व्यक्तिगत विचार नहीं देना चाहिए।
जजों के ऐसे आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने किशोरों के अधिकारों का हनन बताया है। साथ ही, सर्वोच्च अदालत ने इस मामले में कोर्ट की सहायता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान को न्याय मित्र के तौर पर नियुक्त किया है और अधिवक्ता लिज मैथ्यू को न्याय मित्र की सहायता प्रदान करेंगे। उच्चतम न्यायालय ने इस मामले में कहा कि हाईकोर्ट द्वारा अभियुक्तों को बरी करने के आदेश के पीछे पॉक्सो एक्ट से संबंधित कोई कारण नहीं बताया गया है। कोर्ट की मानें तो दोषी को बरी करना भी पहली निगाह में उचित नहीं जान पड़ता है। इसी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्री से कहा है कि वो हाईकोर्ट के फैसले की ऑर्डर की प्रति भी मंगवाए।
क्या है पूरा मामला
दरअसल ट्रायल कोर्ट ने 20 साल के युवक को उसकी नाबालिग प्रेमिका के साथ सेक्सुअल रिलेशन बनाने के लिए बीस साल जेल की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ युवक ने हाईकोर्ट में अपील की थी। हाईकोर्ट में युवक की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की नाबालिग प्रेमिका ने कोर्ट से कहा था कि शारीरिक संबंध दोनों के बीच सहमति से बने थे और दोनों शादी करना चाहते थे।
हाइकोर्ट द्वारा युवक को सजा सुनाए जाने को लेकर बताया गया है कि पीड़िता नाबालिग थी, इसलिए कोर्ट ने पोक्सो कानून के तहत 20 साल के युवक को सजा सुनाई थी। हालांकि, कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद युवक को बरी कर दिया था, लेकिन उनके फैसले की भाषा को उच्चतम न्यायालय ने आपत्तिजनक बताया है।
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