Same Sex Marriage: समलैंगिक विवाह मामले में आज भी सुनवाई जारी रही। जहां केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 जजों जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली तथा जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ से आग्रह किया है कि इस मामले में सभी राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों को इस मामले की सुनवाई में एक पक्ष बनाया जाए, तो याचिकाकर्ताओं के वकील मुकुल रोहतगी ने विरोध जताते हुए कहा है कि केंद्रीय कानून को चुनौती दी गई है इसलिए इसमें राज्यों को नोटिस जारी करना जरूरी नहीं है। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि अभी तक कोई सरकारी आंकड़ा नहीं कि यह शहरी विचार है या कुछ और…
आज बुधवार 19 अप्रैल की सुनवाई में
याचिकाकर्ता के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा- कानून क्या है? समाज एक दिन कानून मान लेता है। जब विधवा विवाह मान लिया तो समलैंगिक कानून भी स्वीकार कर लेगा।
जस्टिस कौल– (टोकते हुए) आप जो कह रहे हैं वह दोधारी तलवार है। जब आप कहते हैं कि समाज अभी तैयार नहीं, कानून को अपना स्टैंड लेना चाहिए। तब दूसरा पक्ष तर्क दे सकता है कि जब समाज तैयार हो जाएगा तब संसद कानून बना देगी।
रोहतगी– हमारे या किसी के मौलिक अधिकार प्रभावित होते हैं तो उसे अदालत आने का अधिकार है।
जस्टिस भट-(पूछते हुए) एक मुख्य भाग के लिए आप चाहते हैं कि यहां जेंडर न्यूट्रल हो जाए। लेकिन भाग सी के लिए आप पुरुष और महिला में भेद रखना चाहते हैं। आप चाहते क्या हैं?
याचिकाकर्ता के वकील मनु सिंघवी– समलैंगिक विवाह के इतने सारे पहलू हैं कि समान लिंग विवाह की मान्यता को ओपन नहीं छोड़ा जा सकता। उन्होंने पूछा- क्या सिर्फ परंपरागत शादियां ही चाहते हैं तो फिर अंतर्रजातीय और अंतर्रधार्मिक शादियों के बारे में क्या विचार है?
जस्टिस भट– प्रश्न है कि उदाहरण के लिए आप बीमा लेते हैं,जबकि बीमा कानून अपने आप में विनियमन है। तो क्या हमारे पास IRDA के मानक नियम हैं। ऐसे ही कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो अन्य क्षेत्रों में प्रवेश किए बिना तुरंत की जा सकती हैं।
सिंघवी- इस वर्ग का भेदभावपूर्ण बहिष्कार केवल सेक्स और यौन अभिविन्यास पर हो रहा है ।
जस्टिस चंद्रचूड़– राज्य किसी व्यक्ति के साथ उस विशेषता के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। जिस पर मानवीय नियंत्रण ही नहीं है।
आज की सुनवाई की समाप्त, सुनवाई कल भी जारी रहेगी। आज केंद्र ने समलैंगिग मामले में एक और नया हलफनामा दायर कर राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक पक्ष बनाने का आग्रह किया है।
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