Holi: एक समय था जब फागुन के महीने में पड़ने वाली होली में लोग अपने इष्ट को खुश करने के लिए होली के त्योहार को काफी धूमधाम से मनाया करते थे। उस समय पूरा गांव, टोला-मोहल्ला, प्रेम और सौहार्द के रंग में रंगा हुआ नजर आता था। लोग एक दूसरे को रंग लगाकर गले लगाते थे। सभी लोग मिल-जुलकर होली खेला करते थे, गीत गाया करते थे, हंसी ठिठोली करते थे। इन सबके बीच हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संजो कर रखने का काम करते थे फगुआ के गीत गाने वाले वो फनकार जो अब धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। होली के त्योहार की शुरुआत एक महीने पहले ही हो जाया करती थी। अब के लोग फागुन के फगुआ गीतों को भूल चुके हैं जिसके कारण ये कला विलुप्त होती नजर आ रही है।
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प्रेम और सौहार्द से होती थी फगुआ की शुरुआत
फगुआ का राग लोगों को एक दूसरे के साथ जोड़ता था या यूं कहें कि समाज को जोड़ता था। पहले होली आने से काफी पहले से ही फगुआ की शुरुआत होने लगती थी। इसके लिए गांवों में, टोले-मोहल्ले में विधिवत तैयारियां की जाती थीं। होली वाले दिन फगुआ का राग, ढोलक की थाप, झांझर की झनकार लोगों को काफी पसंद आती थी। कहते हैं कि शिवरात्री के बाद से ही फगुआ के फनकारों की टोली सक्रिय हो जाती थी और कजरी के गीतों तक धूमधाम रहती थी। फगुआ के फनकार गांव-गांव में जाकर हर टोला-मोहल्ला गीत गाते थे। यह कई लाख लोगों का रोजगार होता था लेकिन आज के समय में भारत की ये सांस्कृतिक धरोहर विलुप्त होती जा रही है। आज की जनरेशन भारत की इस धरोहर से काफी अनजान है।
पुरानी फिल्मों में देखने को मिलता था फगुआ का राग
अगर आपने पुरानी फिल्मों में होली का त्योहार देखा है तो आपने कई फगुआ के राग सुने होंगे। फिल्म मदर इंडिया में “होली आई रे कन्हाई,” फिल्म नवरंग में “अरे जा रे हट नटखट ना छू रे मेरा घूंघट पलट के दूंगी आज तुझे गाली,” नदिया के पार का होली गीत “जोगी जी धीरे-धीरे” गानें तो आपको याद ही होंगे। इसके अलावा सिलसिला फिल्म का “रंग बरसे भीगे चुनर वाली” जिसे आज भी लोग काफी पसंद करते हैं। इसके साथ ही शोले फिल्म का होली गीत “होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं।“ ऐसे बहुत से पुराने गाने हैं जिनमें फगुआ के फनकारों की झलक देखने को मिल जाती है।
पहले लोग कैसे मनाते थे होली
पुराने समय के लोगों से जब होली के त्योहार की बातें सुनते हैं तो वो लोग उन बातों को बताते हुए अपने आप में ही गुम हो जाते हैं। उन लोगों का मानना है कि पुराने समय में लोग होली के समय दुश्मनों को भी गले लगा लिया करते थे। उस समय होली एक दिन का त्योहार नहीं बल्कि महीनों तक चलने वाला त्योहार था। जो लोग घर से दूर रहते थे वो भी होली के अवसर पर अपने घर आया करते थे। गांव भर के लोग इकट्ठे होकर होली का आनंद लेते थे। गावों में एक महीने तक ढोल, मजीरे आदि की गूंज रहती थी। होलिका दहन वाले दिन सभी लोग मिलकर होलिका के आसपास घूमकर चक्कर लगाते थे। अगले दिन होली खेलते थे। सुबह-सुबह उठकर एक जगह इकट्ठे होकर दोस्तों के साथ हुड़दंग में मस्त हो जाते थे। आज के समय में एक-दूसरे के अंदर सामंजस्य की कमी नजर आती है। इसके अलावा गायकों के कद्रदानों की कमी आदि कारणों की वजह से हमारी पुरानी परंपराएं दम तोड़ती नजर आ रही हैं। यह परंपरा अब शहर ही नहीं बल्कि गावों में भी देखने को नहीं मिलती है।
क्या है आज की होली
आज के समय में भी लोग धूमधाम से रंगों के इस त्योहार को मनाते हैं लेकिन अब की होली में पुराने समय वाली बात नहीं रह गई। अब लोग नशे में धुत होकर डीजे बजाकर अश्लील गानों पर नाचते हैं।
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