Premanand Maharaj: नए साल की शुरुआत से पहले इसको लेकर उत्साह बढ़ता नजर आ रहा है। पुरुष से लेकर महिलाएं, बुजुर्ग व बच्चें, आगामी वर्ष में नई शुरुआत करने को आतुर हैं। उनके मन में तमाम तरह के सवाल भी हैं। ऐसा ही एक युवा है जिसकी उम्र 18 वर्ष है और वो ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहता है। इसी इच्छा के साथ युवक प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) के दरबार में पहुंचता है। प्रेमानंद महाराज युवक को देख हैरान रह जाते हैं और फिर तार्किक अंदाज में अपनी बात रखते हैं। ऐसे में अगर आप भी नए साल में नई शुरुआत करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहते हैं तो प्रेमानंद महाराज की बात ध्यान से सुनें।
नए साल में नई शुरुआत करने को इच्छुक युवक को Premanand Maharaj का जवाब!
‘मैं 18 साल का लड़का हूं। 2025 आने वाला है। मैं अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहता हूं। कैसे करूं?’ गुरु प्रेमानंद (Premanand Maharaj) के समक्ष ये सवाल एक युवक बड़े बेबाकी से रखता है। प्रेमानंद महाराज, युवक के सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं कि “अखंड ब्रह्मचर्य का पालन आसान नहीं होता।पूर्वाभ्यास आपको प्रेरित कर गिरा देगा। पूर्वाभ्यास को अगर रोक पाओ यह मान कर, जैसे आपके हृदय में वेदना हो रही किसी क्रिया के लिए आप उस समय अगर रोक पाओ तो फिर चला जा सकता है। हालांकि रोकना बहुत कठिन होता है। अगर अभ्यास हो गया है तो ना चाहते हुए भी वह अभ्यास अपनी क्रिया में उतार ही देता है। अगर भोजन सही रखो, 30 मिनट व्यायाम करोगे, 20 मिनट प्राणायाम करोगे, मोबाइल से गंदी बातें नहीं देखोगे और अपने आए हुए वेग को सह जाओगे तो जीत जाओगे।”
प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं कि “पूर्वाभ्यास बहुत गलत होता है। दिन व्यतीत होने के बाद फिर पूर्वाभ्यास चढ़ जाएगा। अगर इसको सह पाओ तो करो। हम आपको बताए, जब अपने आप में ये आ जाएगा तो ना गुरुजी की सुनेगा ना दादा गुरुजी की सुनेगा। आपको पता है वो बहुत विचित्र खेल है।”
ब्रह्मचर्य पालन के लिए प्रेमानंद महाराज ने सुझाया उपाय!
गुरु प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि “अगर भगवान का नाम जप है और दैन्य है। अहंकार नहीं है तो निर्वाह कर ले जाओगे। निर्वाह कर अहंकार है कि मैं एक वर्ष से ब्रह्मचारी हूं या अगले वर्ष से पूरा ब्रह्मचारी हूं, तो परेशानी है। खानपान सात्विक होना चाहिए। खानपान के साथ तिलक लगाए तो कोई गलत तो नहीं होगा।”
गुरु प्रेमानंद एक मंत्र का उच्चारण करते हुए कहते हैं कि “ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥ इसका आशय है कोई भी मनुष्य, पवित्र हो या अपवित्र या किसी भी स्थिति में हो, स्मरण करते ही बाहर-भीतर से पवित्र हो जाता है। आप भगवान का नाम जप करते रहो, बहुत अच्छा है। हम धन्यवाद देते हैं कि आप नए बच्चा ब्रह्मचर्य पालन की बात करते हो। पहले हमने आपके मन को तोड़ा, देखें कितना दम है। पर अगर आप चलना चाहते हो तो हम आपको उत्साह देते हैं। धन्यवाद देते हैं कि आप आगे बढ़ें। भले गृहस्थ में जाओ लेकिन 10 पांच वर्ष अगर ब्रह्मचारी रहोगे तो एक अच्छे गृहस्थ हो जाओगे।”