Premanand Maharaj: समाज में रहने वाले लोगों के बीच कई तरह की आम धारणाएं होती हैं। इनमें से एक है पुत्र पैदा होने की लालसा। आम धारणा है कि पुत्र वंशज को आगे बढ़ाने का काम करता है। यही वजह है कि पुत्र प्राप्ति के लिए लोग तरह-तरह के नुस्खे अपनाते हैं। कई ऐसे भी हैं जो एक या दो कन्या होने के बाद भी पुत्र पैदा होने की लालसा रखते हैं। ऐसे लोगों के लिए प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) ने खास संदेश जारी किया है। गुरु प्रेमानंद (Guru Premanand) ने बड़ी लकीर खींचते हुए पुत्र और पुत्री के साथ होने वाले बर्ताव पर खुल कर अपनी बात कही है। प्रेमानंद महाराज का ये खास उपदेश सुन लोगों की आंखें खुल सकती हैं। आइए हम आपको प्रेमानंद महाराज के उपदेश के बारे में विस्तार से बताते हैं।
कन्या होने के बाद पुत्र की चाहत रखने वाले ध्यान से सुनें Premanand Maharaj का ये खास उपदेश!
प्रेमानंद महाराज के समक्ष एक ऐसी महिला पहुंचीं जिनकी दो पुत्रियां हैं। उनकी लालसा है कि उन्हें एक पुत्र होना चाहिए। इस लालसा और सवाल को लेकर महिला प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) के दरबार में पहुंचती हैं।
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प्रेमानंद महाराज महिला के सवाल का जवाब देते हुए सबसे पहले कहते हैं कि “क्यों होना चाहिए? पुत्र में क्या विशेषता है? देखो कितने ऐसे पुत्र हैं जो अपने माता-पिता को डंडा और थप्पड़ मारते हैं। प्रधानता पुत्र की नहीं, प्रधानता संतान की है। चाहें वो कन्या हो, चाहें वो पुत्र हो। अगर कन्या है तो उनको पुत्र मानकर ही पालन-पोषण करो। अच्छे वर से उनका वरण करो और अपनी संपत्ति उन्हें प्रदान कर दो।”
गुरु प्रेमानंद (Guru Premanand) आगे कहते हैं कि “गर्भ में अगर बच्ची है तो उसको नष्ट करवा देना। बच्ची के पैदा होने पर पिता का उदास होना। दो-चार साल की बच्ची को किसी तरह से निपटाने की भावना। कितनी ऐसी समाज में घटनाएं आती हैं। क्या पुत्र से स्वर्गेय परम पद मिल जाएगा? नरक भी नहीं मिलेगा। क्या सबरी जी और मीरा जी का नाम जितने आदर से आज लिया जाता है। ना वीरता में, ना पढ़ाई में और ना किसी सांसारिक उन्नति में, माताएं-बहनें कम नहीं है। और जो लड़की के प्रति भेद-भाव रखते हैं तो लड़का कहां से पैदा हो जाएगा। सृष्टि कहां से चलेगी? ये तो जननी हैं।” प्रेमानंद महाराज द्वारा दिए गए उपदेश का वीडियो ‘भजनमार्ग ऑफिसियल’ नामक इंस्टाग्राम हैंडल से जारी किया गया है।
पुत्र प्राप्ति को लेकर लोगों के बीच आम धारणा क्या?
समाज विभिन्न विचारधाराओं में विश्वास रखने वाले, विभिन्न संस्कृति को अपनाने वाले और कई तरह की भिन्नता से भरे लोगों से मिलकर बनता है। हमारे आस-पास जब हम देखेंगे तो कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जिनके भीतर पुत्र प्राप्ति की लालसा रहती हैं। बीतते समय के साथ लोगों की मंशा बदली है। लोग अब पुत्र और पुत्री में तनिक भी भेद-भाव रखना नहीं चाहते हैं। हालांकि, अपवाद यहां भी लागू होता है और कुछ-एक ऐसे लोग मिल ही जाते हैं जो पुत्री की तुलना में पुत्र की प्रधानता में विश्वास रखते हैं। पुत्र प्राप्ति को लेकर लोगों के भीतर कई तरह की धारणाएं होती है। मसलन वंशज को आगे बढ़ाना, बुढ़ापे का सहारा बनना इत्यादि जैसी बातें।