Premanand Maharaj: आधुनिकता के इस दौर में प्रेम को लेकर बहुत भ्रम है। सच्चे प्रेम की परिभाषा अपने-अपने सुविधानुसार गढ़ ली जाती है। युवा पीढ़ी इस सवाल को लेकर उलझन में भी नजर आती है। कई ऐसे युवा हैं जो सच्चे प्यार की पहचान करने के तरीकों को लेकर उलझन में रहते हैं। प्रेमानंद महाराज ने ऐसे युवाओं का उलझन दूर करने के लिए बेहद ही तार्किक अंदाज में एक उपाय सुझाया है। प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) ने एक युवक द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए बताया है कि सच्चे प्यार की पहचान कैसे की जा सकती है। आइए हम आपको प्रेमानंद महाराज के उपदेश के बारे में विस्तार से बताते हैं।
Premanand Maharaj ने बताया सच्चे प्यार की पहचान का तरीका!
‘हम किसी से प्यार करते हैं तो क्या हमें उससे भी अपने लिए उतने ही प्यार की उम्मीद करनी चाहिए? किसी भी वस्तु व्यक्ति से लगाव ना रखते हुए प्रेम कैसे किया जा सकता है? हम किसी से सच्चा प्रेम करते हैं तो इसकी पहचान कैसे करें?’ ये सभी सवाल उस युवक के हैं जो अपने मन में उठ रहे तमाम उलझनों का जवाब जानने प्रेमानंद महाराज के दरबार पहुंचा है।
प्रेमानंद महाराज युवक को जवाब देते हुए कहते हैं कि “प्रेम तो ऐसा होता है तभी तो यहां प्यार को प्यार नहीं, राग, मोह, काम कहते हैं। यहां प्यार थोड़ी कहते हैं। यहां तो प्यार के नाम पर वासनाओं का खेल होता है। मेरे अनुकूल चलो, इसे प्यार नहीं कहते, इसे स्वार्थ, वासना, काम, राग, मोह कहते हैं। आपके लिए हम प्राण दे सकते हैं। आपको अगर वह प्यारा लगता है तो मैं जीवन भर आपको उससे मिलाता रहूंगा, लेकिन आपको कभी आंच नहीं आने दूंगा क्योंकि मैं आपको प्यार करता हूं। आपसे मैं प्यार करता हूं, मेरे सामने आप अपनी प्यारी वस्तु को ग्रहण करें मुझे हर्ष होगा। इसे प्यार कहते हैं।”
गुरु प्रेमानंद कहते हैं कि “वासनाओं का खेल खेलने वालों को प्यार का नाम दे दिया गया, ये प्यार थोड़ी है वासनाओं का खेल है। प्यार प्यार का मतलब होता है मैं तुम्हें प्यार करता हूं तुम्हारी जितनी प्यारी वस्तु होगी उसकी सुरक्षा मैं करूंगा और तुम्हें तुम्हारी प्यारी वस्तु दिलाऊंगा। उसे प्यार कहते हैं। हम बच्चों से कहते हैं प्यार करने के लिए हम निषेध नहीं करते, हम निषेध करते हैं गंदे आचरण और व्यविचार करते वालों का। तुम दोस्ती करो, अपनी बहन के साथ कैसे रहते हो, वैसे रह सकते हो बनाओ दोस्त। लेकिन तुम्हारी वासना, दोस्ती का नाटक करके केवल शोषण करना होता है। इसीलिए सबकी बुद्धि भ्रष्ट होती जा रही है।”
प्रेम भाव को लेकर गुरु प्रेमानंद महाराज ने कह दी बड़ी बात
वर्तमान आचरण को देखते हुए प्रेमानंद महाराज (Premanand Maharaj) कहते हैं कि “पहले वर्षों तक एक-दूसरे के साथ खेलने वाले बच्चों को पता नहीं होता था कि स्त्री शरीर या पुरुष शरीर का कोई आकर्षण होता है। आज 10, 12 वर्ष के बच्चे को पूरा ज्ञान है। हम इसे प्यार नहीं मानते। अपने प्यारे को सुख देना है तो प्यार करो। आज सुख लेने के भाव को प्यार कहा जाता है। हम तुमसे प्यार करते हैं, तुम हमारी बात मान जाओ। यह कोई बात नहीं होती। आपको उठा कर भगवान तक पहुंचाने के लिए प्रेम करते हैं। जरूरत पड़ने पर अपने प्राण आपको समर्पित कर सकते हैं। प्यार का मतलब होता है सुख पहुंचाना। सुख लेना धंधा है, प्यार नहीं है। प्यार शब्द बहुत निर्मल होता है।”
प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं कि “अगर हम किसी से प्यार करें तो उसमें भगवान नहीं प्रकट कर सकते। हम पाषाण की मूर्ति में भगवान प्रकट कर लेते हैं। प्यार के बल से हम मिट्टी की मूर्ति में भगवान प्रकट कर लेते हैं। हम छवि में भगवान प्रकट कर लेते हैं, तो इनमें भगवान नहीं प्रकट कर सकते। हम जिसे प्यार करें, उसे अपना भगवान मान लें और उसको सुख पहुंचाने लगे तो वहीं भगवान प्रकट हो जाएंगे। जब हमारे धर्म की पद्धति है कि हम पानी ग्रहण करके ही फिर इस कार्य को करते तो शास्त्र मर्यादा में रहो। जब आपने खुद को पवित्र रखा नहीं, तो पत्नी व्रत या पति व्रत कैसे रहोगे? यदि ऐसा नहीं किया तो गृहस्ती किस काम की रह गई। यदि पत्नी किसी और से मिले, पति किसी और से मिले तो वह जीवन नर्क के समान है।”
नोट– भजनमार्ग के आधिकारिक यूट्यूब चैनल से जारी वीडियो में 29वें मिनट से 32 मिनट के बीच यहां लिखे गए अंश को सुना जा सकता है।