Rajasthan Election 2023: राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Legislative Election 2023) के तहत सभी पार्टियों ने अपनी-अपनी रणनीतियों को धार देना शुरु कर दिया है। इसी के तहत भाजपा (BJP) ने भी अपनी अंदरूनी राजनीति और अन्य राज्यों के चुनावी नतीजों के अनुभवों के आधार पर साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव 2023 के लिए टिकट बंटवारा कैसे होगा इसकी तैयारी शुरु कर दी है। ऐसे में माना जा रहा है कि पिछले साल हुए गुजरात चुनाव में मिली बंपर जीत वाला दांव बीजेपी राजस्थान में आजमा सकती है। इस बीच खबर ये भी आई कि केंद्र की सिफारिश पर राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया (Gulab Chand Kataria) को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने असम का राज्यपाल नियुक्त कर दिया है। साफ है कि बीजेपी हाईकमान अघोषित रूप से वसुंधरा राजे समेत प्रदेश के अन्य दिग्गज नेताओं को संदेश देने की कोशिश कर रही है कि टिकट पर मंथन से पहले बड़ा उलट-फेर हो सकता है।
जानें क्या है बीजेपी का गुजरात दांव?
गुजरात विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाते समय बीजेपी केंद्रीय कमान ने अपनी बहुचर्चित हो चुकी पार्टी की 70+ नीति के तहत पूर्व सीएम विजय रुपाणी सहित कई दिग्गज नेताओं के टिकट काट दिए थे और इनकी जगह भरने के लिए अन्य प्रतीक्षारत युवा नेताओं को टिकट देकर गुजरात की राजनीति में आगे बढ़ा दिया था। जिसका परिणाम भाजपा को राज्य में बंपर जीत के रुप में मिला। अब इसी सफल गुजरात दांव को पार्टी ने राजस्थान चुनावों में अमल में लाने के संकेत नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया को असम भेजने का रास्ता साफ कर दे दिया है। अब बड़ा सवाल यह है कि यदि पार्टी ने 70+ नीति का फॉर्मूला राजस्थान में लगा दिया तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित कई दिग्गजों के टिकट खुद ही कट जाएंगे। अब देखना यह होगा कि क्या भाजपा वसुंधरा राजे पर ये दांव आजमाने का खतरा मोल लेती है या नहीं।
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राजनीतिक पंडितों की अलग-अलग राय
राजनीतिक पंडितों की मानें तो राजस्थान और गुजरात की सामाजिक संरचना तथा राजनीतिक स्थिति बिल्कुल अलग है। राजस्थान में वसुंधरा का कद गुजरात में विजय रुपाणी के मुकाबले बहुत बड़ा है। ऐसे में राजस्थान की तुलना गुजरात से करने की भूल करना भाजपा को भारी पड़ सकता है। वसुंधरा राजे का सीएम अशोक गहलोत से जो राजनीतिक समीकरण हैं उसपर भी भाजपा को होमवर्क करना चाहिए। यह तथ्य सर्वविदित है कि कांग्रेस में सचिन पायलट और भाजपा में वसुंधरा के अलावा किसी और नेता की बात उठेगी तो राजस्थान की राजनीतिक सत्ता का फैसला गहलोत और वसुंधरा मिलकर तय करते हैं।
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