One Nation One Election: विविधता से भरे भारत की खास बात है सार्वजनिक मंच पर सभी का एक होना। ‘हम भारत के लोग’ भाव के साथ भारत का प्रतिनिधित्व गर्व से होता है। इस ‘एक’ व एकता के तर्ज पर केन्द्र सरकार ‘एक देश एक चुनाव’ की बात कर रही है। जानकारी के मुताबिक आज 17 दिसंबर को सदन (Parliament) में One Nation One Election बिल पेश किया जाएगा। एक देश एक चुनाव बिल का विरोध विपक्ष की ओर से जमकर किया जा रहा है। विपक्ष का तर्क है कि केन्द्र का ये कदम लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। वहीं BJP का कहना है कि ‘एक देश एक चुनाव’ होने से विकास को रफ्तार दी जा सकेगी। इन सबसे इतर एक देश एक चुनाव का क्षेत्रीय दलों (Regional Parties) पर क्या असर हो सकता है, इसको लेकर भी चर्चा है।आइए हम आपको सभी संभावनाओं के बारे में बताते हैं।
विपक्ष के विरोध के बीच संसद में पेश होगा One Nation One Election बिल
विपक्षी दलों ने ‘एक देश एक चुनाव’ बिल को लेकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। बिहार से राजद, यूपी में सपा, तमिलनाडु में डीएमके व राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस जमकर ‘एक देश एक चुनाव’ बिल का विरोध करने वाले हैं। विपक्ष की ओर से इस बिल को भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों पर प्रहार के समान बताया जा रहा है। इसी बीच खबर है कि केन्द्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल आज दोपहर 12 बजे लोकसभा में One Nation One Election बिल पेश करेंगे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार इस वन नेशन वन इलेक्शन बिल को पेश कर ‘जेपीसी’ को भी भेज सकती है ताकि सभी दलों की सहमति बन सके।
क्षेत्रीय दलों पर क्या हो सकता है ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ का प्रभाव?
भारत के विभिन्न हिस्सों में खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, संस्कृति, परंपरा व अन्य तमाम चीजों में भिन्नता है। इसी तर्ज पर चुनावी मुद्दे भी अलग होते हैं। विपक्ष का दावा है कि एक देश एक चुनाव (One Nation One Election) होने से क्षेत्रीय मुद्दों का महत्व कम हो जाएगा। इसका असर क्षेत्रीय दलों (Regional Parties) पर पड़ेगा और क्षेत्रीय मुद्दों की राजनीति करने वाले दल प्रभावित होंगे। एक देश एक चुनाव होने के बाद क्षेत्रीय दल संसाधनों के मामले में भी मात खा जाएंगे और केन्द्र स्तर पर मजबूती से टिकी राष्ट्रीय पार्टी को चुनाव में लाभ मिल सकता है। इसके अतिरिक्त ‘एक देश एक चुनाव’ होने के बाद क्षेत्रीय मुद्दों के बजाय जनता बड़े व राष्ट्रीय मुद्दों की ओर आकर्षित होकर राष्ट्रीय पार्टियों की ओर आकर्षित हो सकती है। यदि ऐसा हुआ तो क्षेत्रीय दलों का जनाधार कम होगा जिसका नुकसान उन्हें चुनावी समर में हो सकता है।