Diwali 2024: हिन्दू धर्म में दिवाली (Diwali) महापर्व का खास महत्व है। ये पर्व भगवान श्री राम के द्वारा रावण के वध और लंका विजयी होने के बाद अयोध्या वापस लौटने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा होती है और रोशनी की जाती है। ये पर्व कार्तिक मास की अमावस्या को हर साल मनाया जाता है। इस साल ये 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस खुशी के भरे पर्व का आम इंसानों के साथ-साथ तंत्र विद्या में रुचि करने वाले लोगों को भी होता है। आम इंसान को मां लक्ष्मी की पूजा का इंतजार होता है तो वहीं, अघोरियों को शव साधना और तंत्र पूजा का इंतजार होता है।
दिवाली (Diwali ) का इंतजार क्यों करते हैं अघोरी बाबा?
इस रात अघोरी पूरी रात भर तंत्र साधना करके शैतानी शक्तियों को शमशान में बुलाते हैं और अपनी साधना को पूरा करते हैं। इस रात शमशान घटों में काफी डरावना नजारा देखने को मिलता है। ऐसा माना जाता है कि, इस रात अगर अघोर तंत्र क्रियाएं करते हैं तो उन्हें तांत्रिक सिद्धियां मिल जाती है। तांत्रिक शक्तियों को पाने के लिए अखोरी शमशान घाट में जलती हुए चिता के सामने साधना करते हैं। इस दौरान अघोरी शवों की साधना करके अपनी शक्तियों को बढ़ाते हैं। ये साधना काफी कठिन मानी जाती है। इस दौरान अघोरी की जान पर भी खतरा मंडरा रहा होता है। ऐसा माना जाता है कि, अगर कोई अघोरी इस साधना को पूरा कर लेता है तो वह साधारण इंसानों से ताकतवर बन जाएगा और कुछ भी कर सकता है।
कौन होते हैं अघोरी बाबा?
अघोरी बाबाओं को इस तंत्र विद्या को जानने के बाद काफी लोगों के मन में सवाल उठता है कि, अघोरी बाबा कौन होते हैं? आपको बता दें, अघोरी भगवान शिव के भक्त माने जाते हैं। अघोरी मोह , दुनिया को छोड़ शमशान घाट के सन्नाटे में शिवभक्ति में लीन रहते हैं। अघोरी मां काली और भगवान भोलेनाथ के साथ-साथ काल भैरव की पूजा करते हैं। अघोरियों के शरीर पर इंसानी राख के साथ नर मुंडे और इंसानी हड्डियां देखने को मिलती है। अघोरियों को लेकर कहा जाता है कि, ये संसारी चीजों को छोड़ मोक्ष की प्राप्ति के लिए मुर्दो के साथ ही रहना पसंद करते हैं। अघोरियों की शुरुआत काशी से मानी जाती है।
अघोरियों की रहस्यामयी दुनिया को लेकर लोगों मे काफी दिलचस्पी रहती है। लेकिन कहा जाता है कि, असली अघोरी आम दुनिया से अलग शिव साधना में लीन रहते हैं। ये अपने नियम और कायदों पर चलते हैं।
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