कुबेर जी को प्रसनन करने का उपाय जानें 10 खास बातें!
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1. हिन्दू धर्म में कुबेर को धन का देवता माना गया है। धनतेरस और दीपावली पर माता लक्ष्मी और श्रीगणेश के साथ इनकी भी पूजा होती है। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को इनकी विशेष पूजा की जाती है।
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2. कुबेरदेव को यक्षों का राजा माना जाता है और उनके राज्य की राजधानी अलकापुरी है। कैलाश के समीप इनकी अलकापुरी है। श्वेतवर्ण, तुन्दिल शरीर, अष्टदन्त एवं तीन चरणों वाले, गदाधारी कुबेर अपनी सत्तर योजन विस्तीर्ण वैश्रवणी सभा में विराजते हैं।
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3. कुबेर को यक्ष के अतिरिक्त राक्षस भी कहा गया है, क्योंकि वे रावण के भाई हैं। यक्ष के रूप में वे खजानों के रक्षक है पुराने मंदिरों के वाह्य भागों में कुबेर की मूर्तियां पाए जाने का रहस्य भी यही है कि वे मंदिरों के धन के रक्षक हैं और राक्षस होने के नाते वे धन का भोग भी करते हैं।
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4. दीपावली की रात्रि को यक्ष अपने राजा कुबेर के साथ हास-विलास में बिताते व अपनी यक्षिणियों के साथ आमोद-प्रमोद करते थे। धन के देवता कुबेर की बजाय धन की देवी लक्ष्मी की इस अवसर पर पूजा होने लगी,
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5. कुबेरे देवता देवताओं के कोषाध्यक्ष थे। सैन्य और राज्य खर्च वे ही संचालित करते थे। यक्षों के राजा कुबेर उत्तर के दिक्पाल तथा शिव के भक्त हैं। भगवान शंकर ने इन्हें अपना नित्य सखा स्वीकार किया है। देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर को पूजने से भी पैसों से जुड़ी तमाम समस्याएं दूर रहती हैं।
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6. कुबेर पहले श्रीलंका के राजा था परंतु रावण ने उनसे लंका को हथिया लिया। कुबेरदेव के पास एक महत्वपूर्ण पुष्पक विमान और चंद्रकांता मणि भी थी जिसे भी रावण ने हथिया लिया था।
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7. कुबेर के संबंध में लोकमानस में एक जनश्रुति प्रचलित है। कहा जाता है कि पूर्वजन्म में कुबेर चोर थे-चोर भी ऐसे कि देव मंदिरों में चोरी करने से भी बाज न आते थे।भगवान ब्रह्मा ने इन्हें समस्त सम्पत्ति का स्वामी बनाया। यह भी कहा जाता है कि यह कुबड़े और एक आंख वाले थे परतुं भगवती की अराधना से धनपति और निधियों के स्वामी बन गए थे।
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8. कुबरे की शादी मूर दानव की पुत्री से हुई थी जिनके दो पुत्र नलकूबेर और मणिग्रीव थे। कुबेर की पुत्री का नाम मीनाक्षी था।नलकूबेर और मणिग्रीव भगवान श्री कृष्णचन्द्र द्वारा नारद जी के शाप से मुक्त होकर कुबेर के साथ रहते थे।