सौरी, मन्द, शनी, दश नामा ।भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं ।रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं ॥ ८॥पर्वतहू तृण होई निहारत ।तृणहू को पर्वत करि डारत ॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो ।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई ।
मातु जानकी गई चुराई ॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा ।
मचिगा दल में हाहाकारा ॥ १२॥
रावण की गतिमति बौराई ।रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥दियो कीट करि कंचन लंका ।बजि बजरंग बीर की डंका ॥नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा ।चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी ।
आपहुं भरे डोम घर पानी ॥
तैसे नल पर दशा सिरानी ।
भूंजीमीन कूद गई पानी ॥ २०॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई ।
पारवती को सती कराई ॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा ।नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा ॥पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी ।बची द्रौपदी होति उघारी ॥कौरव के भी गति मति मारयो ।युद्ध महाभारत करि डारयो ॥ २४॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।
लेकर कूदि परयो पाताला ॥
शेष देवलखि विनती लाई ।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥
वाहन प्रभु के सात सजाना ।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला ।लेकर कूदि परयो पाताला ॥शेष देवलखि विनती लाई ।रवि को मुख ते दियो छुड़ाई ॥वाहन प्रभु के सात सजाना ।जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना ॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी ।सो फल ज्योतिष कहत पुकारी ॥ २८॥गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं ।हय ते सुख सम्पति उपजावैं ॥गर्दभ हानि करै बहु काजा ।सिंह सिद्धकर राज समाजा ॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै ।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै ॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी ।
चोरी आदि होय डर भारी ॥ ३२॥
तैसहि चारि चरण यह नामा ।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा ॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं ।धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं ॥समता ताम्र रजत शुभकारी ।स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी ॥जो यह शनि चरित्र नित गावै ।कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै ॥ ३६॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला ।करैं शत्रु के नशि बलि ढीला ॥जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई ।विधिवत शनि ग्रह शांति कराई ॥पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत ।दीप दान दै बहु सुख पावत ॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा ।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा ॥ ४०॥
॥ दोहा ॥
पाठ शनिश्चर देव को, की हों भक्त तैयार ।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार ॥